सोमवार, 13 जनवरी 2014

We Pledge that : हम शपथ लेते है कि

    अब रही यह बात कि ईश्वरवाद (अल्लाह को एक मानना) किस प्रकार के अख्लाक की अपेक्षा करता है और ऐसे अख्लाक का प्रदर्शन किस तरह इन्सान के व्यावहारिक जीवन में और उसकी व्यक्तिगत और सामाजिक नीति में होना चाहिए तो इसे बयान करने के लिए बड़ा समय चाहिए। इसे संक्षेप में समेटना बड़ा मुश्किल है। परन्तु यहाँ नमूने के तौर पर पैगम्बर (सल्ल) के कुछ कथन पेश किए जा रहे हैं, जिनसे आपको अंदाज़ा होगा कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल) की पेश की हुई जीवन-व्यवस्था में ईमान, अख्लाक और अमल को किस प्रकार एक-दूसरे में समोया गया है। आप (सल्ल) फरमाते हैं। 

F‘‘ईमान की बहुत-सी शाखाएँ हैं। उसकी उच्च शाखा यह है कि तुम खुदा के सिवा किसी की उपासना करो। और उसकी निम्न शाखा यह है कि रास्ते में अगर तुम कोई ऐसी चीज़ देखो, जो राहगीरों को कष्ट देने वाली हो, तो उसे हटा दो और लज्जा (हया) भी ईमान ही की एक शाखा है।’’ (हदीस- बुखारी, मुस्लिम)

F ‘‘शरीर और लिबास का पाक-साफ रखना आधा ईमान है।’’

F ‘‘ईमान वाला वह है, जिससे लोगों को अपनी जान और माल का कोई खतरा हो।’’ (हदीस तिर्मिजी, नसई)

F ‘‘उस व्यक्ति में ईमान नहीं, जिसमें अमानतदारी नहीं, और उसका कोई दीन-धर्म नहीं, जो वायदे और अहद का पाबन्द नहीं।’’ (हदीस अल-बैहकी फी शोबिल ईमान)
F ‘‘जब नेकी करके तुझे खुशी हो और बुराई करके तुझे पछतावा हो तो तू ईमान वाला है।’’ (हदीस- मुस्नद, अहमद)
F ‘‘ईमान संयम, सहनशीलता और उदार-हृदयता का नाम है।’’

F ‘‘बेहतरीन ईमानी हालत यह है कि तेरी दोस्ती और दुश्मनी खुदा के वास्ते हो। तेरी जु़बान पर खुदा का नाम जारी हो और तू दूसरों के लिए वही कुछ पसन्द करे, जो अपने लिए पसन्द करता है और उनके लिए वह कुछ नापसन्द करे, जो अपने लिए नापसन्द करता है।’’ (हदीस मुस्नद अहमद)

F‘‘ईमान वालों में अपने ईमान के लिहाज़ से सबसे ज्यादा मुकम्मल ईमान उस व्यक्ति का है जो उनमें शील-स्वभाव और आचरण के लिहाज़ से सबसे अच्छा हो और जो अपने घर वालों पर सबसे ज्यादा मेहरबान हो।’’ (हदीस तिर्मिजी)
F ‘‘जो व्यक्ति खुदा और आखिरत पर ईमान रखता हो उसे अपने मेहमान की इज्ज़त करनी चाहिए, अपने पड़ोसी को तकलीफ नहीं देनी चाहिए। और उसे चाहिए कि जब बोले तो भली बात बोले, वरना चुप रहे।’’ (हदीस बुखारी, मुस्लिम)

F ‘‘मुसलमान कभी ताने देने वाला, लानत-मलामत करने वाला, गन्दी बातें करने वाला और जुबानदराज़ी करने वाला नहीं हुआ करता।’’ (हदीस तिर्मिज़ी)

F ‘‘मोमिन सब कुछ हो सकता है, मगर झूठा और विश्वासघात (ख्यानत) करने वाला नहीं हो सकता।’’(हदीस अहमद)
F ‘‘खुदा की कसम, वह मोमिन नहीं है जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी चैन से रहे।’’ (हदीस बुखारी, मुस्लिम)

F ‘‘जो व्यक्ति खुद पेट भर खाये और उसके पड़ोस में इसका पड़ोसी भूखा रह जाए, वह ईमान नहीं रखता।’’ (हदीस अल-बैहकी फी शोबिल ईमान)

F ‘‘जो व्यक्ति अपना गुस्सा निकाल लेने की ताकत रखता हो तो फिर गुस्सा पी जाए, उसके दिल को खुदा शान्ति और ईमान से भर देता है।’’ (हदीस अबू-दाऊद)
F ‘‘जो व्यक्ति किसी ज़ालिम और अत्याचारी को ज़ाालिम जानते हुए उसका साथ दे, वह इस्लाम से निकल गया।’’ (हदीस अल-बैहकी फी शोबिल ईमान)

F ‘‘जिसने लोगों को दिखाने के लिए नमाज़ पड़ी, या रोज़ा रखा या दान (खैरात) दिया उसने खुदा के साथ लोगों को शरीक किया।’’ (हदीस अहमद)

F ‘‘खालिस मुनाफिक (कपटाचारी) है वह व्यक्ति, जो अमानत में खयानत करे, बोले तो झूठ बोले, वचन दे तो उसे भंग कर दे और लड़े-झगड़े तो शराफत की हद से गुज़र जाए।’’(हदीस बुखारी, मुस्लिम)

F ‘‘झूठी गवाही देना इतना बड़ा गुनाह है कि शिर्क के करीब पहुँच जाता है। असली मुजाहिद वह है, जो खुदा की फरमाबरदारी में खुद अपने आप से लड़े और असली मुहाजिर वह है जो उन कामों को छोड़े जिन्हें खुदा नापसन्द करता है।’’
F ‘‘कियामत के दिन खुदा के साये में सबसे पहले जगह पाने वाले वे लोग होंगे, जिनका हाल यह रहा कि जब भी सच उनके सामने पेश किया गया तो उन्होंने मान लिया। और जब भी हक उनसे मांगा गया तो उन्होंने खुले दिल से दिया और दूसरों के मामले में उन्होंने वह फैसला किया जो वे खुद अपने मामले में जानते थे।’’ (हदीस अहमद)

F ‘‘तुम छः बातों की गारंटी दो, मैं तुम्हारे लिए जन्नत की गारंटी देता हूँ  (1) बोलो तो सच बोलो। (2) वचन दो तो पूरा करो। (3)  अमानत में खरे उतरो। (4)  व्यभिचार से बचो। (5)  बुरी नज़र से देखो और (6)  ज़ुल्म से हाथ रोक लो।’’ (हदीस)

F ‘‘धोखेबाज़ और कंजूस और एहसान जताने वाला आदमी जन्नत में नहीं जा सकता।’’  (हदीस तिर्मिजी)

F ‘‘जो शरीर हराम की कमाई (रिश्वत, ब्याज, गबन, धोखे, चोरी के धन )से पला हो, उसके लिए तो नरक की आग ही ज्यादा मुनासिब है। वह जन्नत में नहीं जा सकता।’’ (हदीस इब्ने माजा)

F ‘‘जिस व्यक्ति ने ऐबदार चीज़ बेची और खरीदार को उसके ऐब से बाखबर नहीं किया, उस पर खुदा का गुस्सा भड़कता रहता है और फरिश्ते उस पर लानत भेजते रहते हैं।’’(हदीस इब्ने माजा)

F ‘‘कोई व्यक्ति चाहे कितनी ही बार ज़िन्दगी पाए और खुदा की राह में जिहाद करके जान देता रहे, मगर वह जन्नत में नहीं जा सकता, अगर उसने कर्ज़ अदा किया हो।’’(हदीस)

F ‘‘मर्द या औरत साठ साल खुदा की इबादत करते हैं और मरते समय एक वसीयत में हकदार का हक मार कर अपने आपको नरक का अधिकारी बना लेते हैं।’’(हदीस तिर्मिज़ी, अबू-दाऊद, इब्ने माजा)

F ‘‘वह व्यक्ति जन्नत में दाखिल होगा, जो अपने अधीनों से बुरी तरह व्यहवार करे।’’ (हदीस)

F ‘‘मैं तुम्हें बताऊँ कि रोज़े और खैरात और नमाज़ से भी श्रेष्ठ और बेहतर क्या चीज़ है? वह है दो पक्षों में बिगाड़ हो जाए तो उनमें सुलह करा देना। लोगों के आपसी संबंधों में बिगाड़ पैदा करना ऐसी बुरी हरकत है जो तमाम नेकियों पर पानी फेर देती है।’’

F ‘‘असल मुफलिस और दरिद्र वह है, जो कियामत के दिन खुदा के सामने इस हाल में हाज़िर हो कि उसके साथ नमाज़, रोजे़, ज़कात थे, मगर वह किसी को गाली देकर आया था, किसी पर लांछन लगाकर आया था, किसी का माल मार खाया था, किसी का खून बहाया था और किसी को पीट कर आया था। फिर खुदा ने उसकी एक-एक नेकी उन मज़लूमों पर बाँट दी और उन मज़लूमों का एक-एक गुनाह उसके हिसाब में डाल दिया और उसके पास कुछ रहा जो उसे नरक से बचाए।’’ (हदीस मुस्लिम)

F ‘‘लोग निजात और मोक्ष (जन्नत) से वंचित हों अगर अपनी बुराइयों को औचित्य देकर और बहाने कर करके अपने मन (अन्तरआत्मा, ज़मीर) को इत्मीनान दिलाएं।’’ (हदीस अबू-दाऊद)

F ‘‘जो व्यापारी भाव चढ़ाने के लिए (जनता की मूल आवश्यकताओं की) सामग्रियाँ रोक रखे, (अर्थात् जमाखोरी करे) उस पर लानत और फिटकार है। (हदीस इब्ने माजा, दारमी)

Fजिसने चालीस दिन गल्ला (अनाज) इसलिए रोक रखा (जिससे बाज़ार में खाद्य-पदार्थों की कमी पैदा) कि भाव चढ़ जाएँ, तो खुदा का उससे और उसका खुदा से कोई ताल्लुक नहीं। फिर अगर वह उस अनाज को खैरात (दान) भी कर दे तो माफ नहीं किया जाएगा।’’ (हदीस)

       ये अल्लाह के नबी हजरत मुहम्मद (सल्ल) के दसियों हज़ार (संकलित) कथनों में से कुछ कथन हैं जो केवल नमूने के तौर पर यहाँ पेश किए गए। इनसे अंदाज़ा होगा कि पैगम्बर (सल्ल) ने ईमान से अखलाक और आचरण का, और फिर अखलाक से ज़िन्दगी के तमाम विभागों का संबंध किस प्रकार स्थापित किया है। इतिहास का अध्ययन करने वाले जानते हैं कि आप (सल्ल) ने इस चीज़ को सिर्फ बातों की हद तक रखा, बल्कि अमल की दुनिया में एक पूरे देश की राजनैतिक व्यवस्था और संस्कृति को इन्हीं बुनियादों पर कायम करके दिखाया। और ये कारनामा मानवजाति के सबसे बड़ा विचारक पथ-प्रदर्शक औरविश्व-रहनुमाही कर सकता है।

     ईमान के बिना यह जीवन है, और मरने के बाद आने वाला जीवन। कल हम सब को अपने मालिक के पास जाना है यहाॅ सब से पहले ईमान की पूछ होगी। यह सच्ची बातें दिल में घर कर गयी होगी तो आइये सच्चे दिल और सच्ची आत्मा एक बार फिर उस मालिक को गवाह बनाकर और ऐसे सच्चे दिल से जिसे दिलों के भेद जानने वाला मान ले, कुबूल कर लेए इक़रार करें और प्रण लेः- ‘‘अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू रसूलूह, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‘‘ अर्थ मैं गवाही देता हू इस बात की, कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत (पूजा) के लायक नही, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, अल्लाह के सच्चे बन्दे और रसूल है।‘‘ मैं तौबा करता हूँ कुफ्र (नास्तिकता) से शिर्क (किसी प्रकार भी अल्लाह का साझी बनाने) से और समस्त प्रकार के पापों गुनाहों से। और इस बात का प्रण लेता हूँ कि अपने पैदा करने वाले सच्चे मालिक के सब आदेश मानूंगा और आखरी नबी हज़रत मुहम्मद 0 की सच्ची पैरवी (अनुसरण) करूंगा। करूणामय और दयावान मालिक हम सब को  इस राह पर मरते दम तक कायम रखे।

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