रविवार, 12 जनवरी 2014

Hazrat Muhammad (SAw) and Essence of Quran कुरआन का प्रभाव

           अब वह एक आश्चर्यजनक वाणी सुना रहा था, जिसको सुनकर सारी दुनिया अचम्भित रह गयी। उसकी वाणी के प्रभाव की तीव्रता की यह दशा थी कि उसके कट्टर दुश्मन भी उसको सुनते हुए डरते थे कि कहीं यह दिल में उतर न जाए। उसकी वाणी की सरसता, उत्तमता और वर्णन की शक्ति का यह हाल था कि सारी अरब-जाति को, जिसमें बड़े-बड कवि, व्याख्यानदाता और वाकपटुता के दावेदार मौजूद थे, उसने चुनौती दी कि तुम सब मिलकर एक ही ‘‘सूरह’’ (कुरआन का एक अंश) इसके अनुरूप बना लाओ, मगर कोई उसके मुकाबले का साहस न कर सका। ऐसी अनुपम वाणी कभी धरतीवासियों के कानों ने सुनी न थी।

         अब सहसा वह एक अपूर्व ज्ञानी, सभ्यता और सस्कृति का एक अद्वितीय सुधारक, राजनीति का एक आश्चर्यजनक जानकार, एक महान नीतिकार, एक उत्तम श्रेणी का जज, एक वीर सेनापति बनकर प्रकट हुआ। रेगिस्तान के रहने वाले उस अनपढ़ व्यक्ति ने हिकमत, ज्ञान और बुद्धि की वे बातें कहनी प्रारंभ कर दीं जो इससे पहले किसी ने न कही थीं और न उसके बाद कोई कह सका। वह अनपढ़ मनुष्य ईश्वरवाद के महान प्रसंगों पर निश्चयात्मक बयान देने लगा। जातियों के इतिहास से जातियों के उत्थान-पतन के दर्शन पर व्याख्यान देने लगा। पुराने सुधारकों के कार्यों और संसार के धर्मों पर टीका करने लगा। नैतिकता, सभ्यता और शिष्टता का पाठ पढ़ाने लगा।

          उसने सामाजिक, आर्थिक और सामूहिक व्यवहारों और अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के विषय में नियम बनाने आरंभ कर दिए और ऐसे-ऐसे नियम बनाए कि बड़े-बड़े विद्वान और ज्ञानी, सोच-विचार और जीवन भर के अनुभवों के बाद कठिनता से उनके रहस्यों को समझ सके और संसार के अनुभव जितने बढ़ते जाते हैं उनके गुण और अधिक व्यापक होते जाते हैं। वह मौनधारी, शान्तिप्रिय व्यापारी जिसने समस्त जीवन में कभी तलवार नहीं चलाई थी, कभी कोई सैनिक शिक्षा नहीं पाई थी, यहाँ तक कि जो जीवन भर में एक बार एक लड़ाई में केवल तमाशाई की हैसियत से शामिल हुआ था, वह देखते-देखते ऐसा वीर योद्धा बन गया, जिसके पाँव कठिन से कठिन युद्धों में भी अपने स्थान से एक इंच न हटे। ऐसा महान सेनापति बन गया जिसने नौ वर्ष की अवधि में समस्त अरब देश को अपने अधीन कर लिया। ऐसा आश्चर्यजनक मिलेट्री लीडर बन गया कि उसके उत्पन्न किए हुए फौजी संगठन और सैनिक व्यवस्था के प्रभाव से बेसरोसामान अरबों ने गिने-चुने वर्षों में संसार की दो महान सैनिक शक्तियों और उनकी ब्यक्ति वादी व्यवस्था को उलट कर रख दिया। ये दो महान सैनिक शक्तियाँ रोम और ईरान की थीं।

           वह अलग-थलग रहने वाला एकांतप्रिय मनुष्य जिसमें किसी ने चालीस वर्ष तक राजनीतिक रुचि की गंध भी न पाई थी यकायक इतना महान सुधारक और विधिकार बनकर प्रकट हुआ कि 23 वर्ष के भीतर उसने 12 लाख वर्ग मील के क्षेत्र में फैली हुई मरुभूमि के असंगठित, लड़ाकू, मूर्ख, स्वच्छंद, असभ्य और आपस में छोटी छोटी बात पर लड़ने वाले गोत्रों को रेल, तार, रेडियो और प्रेस की सहायता के बिना एक धर्म, एक सभ्यता, एक विधान और एक राज-व्यवस्था के अधीन बना दिया। उसने उनके विचार बदल दिए, उनके स्वभाव बदल दिए, उनके आचरण बदल दिए, उनकी असभ्यता को उच्चकोटि की सभ्यता में, उनकी बर्बरता को श्रेष्ठ नागरिकता में, उनकी दुश्चरित्रता और अनैतिकता को सुचरित्रता, संयम और श्रेष्ठ नैतिकता में, उनकी उद्दंडता और निरंकुशता को असीम नियमबद्धता(Discipline) और आज्ञापालन में परिवर्तित कर दिया। उस बाँझ जाति को जिसकी गोद में शताब्दियों से कोई एक भी वर्णनीय मनुष्य उत्पन्न न हुआ था, उसने ऐसा सफल बना दिया कि उसमें सहस्रों-सहस्र मानव-महान बन गये और संसार को धर्म, नैतिकता, कानून और सभ्यता का पाठ पढ़ाने के लिए संसार में चारों ओर फैल गए। और यह काम उसने अत्याचार, बल-प्रयोग, आडम्बर, शब्दजाल और धन-फरेब से सम्पन्न नहीं किया, बल्कि दिल मोह लेने वाले स्वभाव और आत्माओं को विजय कर लेने वाली सज्जनता और मस्तिष्कों पर प्रभुत्व जमा लेने वाली शिक्षा से सम्पन्न किया। उसने अपने अच्छे व्यवहार से शत्रुओं को मित्र बनाया, दया-प्रेम से दिलों को मोम किया, समता और न्याय से हुकूमत की। हक और सच्चाई से कभी बाल बराबर न हटा। युद्ध में भी कभी किसी से प्रतिज्ञा-भंग और विश्वासघात नहीं किया। अपने दुष्ट शत्रुओं पर भी अत्याचार नहीं किया। जो उसके खून के प्यासे थे, जिन्होंने उनको पत्थर मारे थे, उसको देश से निकाला था, उसके विरुद्ध सारे अरब को खड़ा कर दिया था, यहाँ तक कि जिन्होंने (एक ईश्वर को मानने की) दुश्मनी के जोश में उसके चचा का कलेजा तक निकाल कर चबा डाला था, उनको भी उसने विजय-प्राप्ति के बाद क्षमा कर दिया। अपने लिए कभी उसने किसी से बदला नहीं लिया।

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