रविवार, 12 जनवरी 2014

विश्व-उद्धारक Savior of Universe-4

मठाधीशों, रीतिरिवाजों, अंधी आस्थाओं पर जान देने वाले कुतर्की मूर्ख लोग और पूरी जाति उसकी शत्रु हो जाती है। गालियाँ देती है, बदनाम करती है। पत्थर मारती है। एक दो दिन नहीं, पूरे तेरह वर्ष तक उस पर बड़े से बड़े अत्याचार करती है। यहाँ तक कि उसे देश से निकाल देती है और फिर केवल निकालने पर ही दम नहीं लेती। वह जहाँ जाकर शरण लेता है, वहाँ भी उसे बुरी तरह सताती है। सारे अरब को उसके विरुद्ध उभार देती है और पूरे आठ वर्ष तक उसके विरुद्ध युद्व छेड़े रहती है। वह इन सब कष्टों को सहता है, मगर अपनी बात से नहीं टलता। यह जाति उसकी शत्रु क्यों हुई? क्या धन और धरती का कोई झगड़ा था? क्या सत्ता का कोई दावा था? क्या वह कोई चीज़ माँग रहा था? नहीं, सारी शत्रुता इस बात पर थी कि वह एक ईश्वर (अल्लाह) की उपासना और पवित्रता और पुण्य कर्म की शिक्षा क्यों देता है? मूर्तिपूजा, अनेकेश्वरवाद और कुकर्म के विरुद्ध प्रचार क्यों करता है? पुजारियों, मठाधीशों और पुरोहितों की जन्म आधारित अगुवाई पर चोट क्यों लगाता है? सरदारों की सरदारी का पाखंड क्यों तोड़ता है? आदमी-आदमी के बीच से ऊँच-नीच का भेदभाव क्यों मिटाना चाहता है? गोत्र, जाति और वंश के द्वेष और बढ़ाई को मूर्खता क्यों ठहराता है? चिरकाल से समाज की जो व्यवस्था बंधी चली आ रही है उसे क्यों तोड़ना चाहता है? जाति कहती थी कि ये बातें जो तू कह रहा है ये सब गोत्र-गाथा, रीतिरिवाज, परम्पराओं और जातीय संस्कार के विरुद्ध हैं, तू इन्हें छोड़ दे। नहीं तो हम तेरा जीना मुश्किल कर देंगे।

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