रविवार, 12 जनवरी 2014

विश्व-उद्धारक Savior of Universe-5

            इस व्यक्ति ने ये कष्ट क्यों उठाए? सारे लोग बादशाह मानने के लिए तैयार थे। धन के ढेर उसके चरणों में डालने के लिए तैयार थे इस शर्त पर कि वह इस शिक्षा को बन्द कर दे, मगर उसने उन सबको ठुकरा दिया, और इस शिक्षा के लिए पत्थर खाना और अत्याचार सहना स्वीकार किया। यह आखिर क्यों? क्या लोगों के ईश्वरवादी और सदाचारी बन जाने में उसका कोई अपना लाभ था? क्या कोई ऐसा लाभ था जिसके मुकाबले में राज और सरदारी, दौलत और ऐश के सारे लालच भी कोई महत्व न रखते थे? क्या कोई ऐसा लाभ था जिसकी खातिर एक आदमी कठिन से कठिन शारीरिक और आत्मिक कष्टों में पड़ा रहना और वह भी इक्कीस वर्ष तक पड़ा रहना भी सहन कर सकता हो? विचार कीजिए, क्या सहृदयता, त्याग और मानवजाति की सहानुभूति का इससे भी ऊँचा कोई दर्जा आपकी कल्पना में आ सकता है, कि कोई व्यक्ति अपने लाभ के लिए नहीं दूसरों की भलाई के लिए कष्ट उठाए? जिनकी भलाई और कल्याण के लिए वह प्रयत्न करता है वे ही उसको पत्थर मारें, गालियाँ दें, घर से बेघर कर दें और परदेस में भी उसका पीछा न छोड़े और इन सब बातों पर भी वह उनका भला चाहने से रुके न?
             क्या कोई झूठा भ्रमित व्यक्ति किसी तथ्यहीन बात के लिए ऐसे कष्ट सहन कर सकता है? क्या कोई तीर-तुक्के चलाने वाला आदमी केवल भ्रम और अनुमान से कोई बात कह कर उस पर इतनी धीरता से जम सकता है,  कि विपत्तियों के पहाड़ उस पर टूट जाएँ, धरती उस पर तंग कर दी जाए, सारा देश उसके विरुद्ध उठ खड़ा हो, बड़ी-बड़ी फौजें उस पर उमड-उमड कर आएँ, मगर वह अपनी बात से बाल की नोक के बराबर भी हटने पर आमादा न हो। यह धैर्य, यह संकल्प, यह संतोष स्वयं गवाही दे रहा है, कि उसको अपनी सच्चाई पर विश्वास ओर पूर्ण विश्वास था। यदि उसके हृदय में लेशमात्र भी शक-सन्देह होता तो वह लगातार 21 वर्ष तक विपत्तियों और कष्टों के अनवरत तूफानों के सम्मुख कभी न ठहर सकता था।
           यह तो उस व्यक्ति की दशा-परिवर्तन का एक पहलू था। दूसरा पहलू इससे भी अधिक आश्चर्यजनक है। चालीस वर्ष की आयु तक वह एक अरबी था। साधारण अरबों की भाँति इस बीच में किसी ने उस सौदागर को एक भाषणकर्ता और एक ऐसे व्याख्यानदाता के रूप में न जाना जिसके व्याख्यान में मानो जादू हो। किसी ने उसे हिकमत और ज्ञान की बातें करते न सुना। किसी ने उसको नैतिक दर्शन और विधान, और राजनीति, अर्थ और संस्कृति संबंधी समस्याओं पर वार्ता करते न देखा। किसी ने उससे खुदा और फरिश्ते और आसमानी किताबों और पिछले रसूलों और प्राचीन जातियों, प्रलय और मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो उठने और स्वर्ग-नरक के बारे में एक शब्द भी न सुना। वह चरित्र आचरण, सभ्य, शिष्ट व्यवहार और उत्तम चरित्र तो अवश्य रखता था, मगर चालीस वर्ष की उम्र को पहुंचने तक उसमें कोई असाधारण बात न पाई गई, जिससे लोगों को आशा होती कि अब यह व्यक्ति कुछ बनने वाला है। उस समय तक जानने वाले उसको केवल एक मौन, शान्तिप्रिय और अति सज्जन पुरुष की हैसियत से जानते थे। मगर 40 वर्ष बाद वह अपनी गुफा से एक ऐसा सन्देश लेकर निकला कि इस दुनिया की काया ही पलट गयी।

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