मंगलवार, 14 जनवरी 2014

हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का तरीका : Etiquette of Hazrat Mohammad (S.)

बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
        हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने मन की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। अल्लाह की प्रशंसा और स्तुति (हम्द और सना )के साथ आईये हम सब मिल कर अल्लाह के रसूल मोहम्मद सल्लल्ललाहु अल्©हि वसल्लम पर दरूद व सलाम का गुलदस्ता पेष करें और अब मोहम्मद (सल्ल.) की उन छोटी छोटी तालीमात को जो रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बरतने की है को समझने की सआदत भी हासिल करें और पाक परवरदिगार से ये दुआ करें कि, ‘‘ऐ अल्लाह! हम सब को अपन रसूल के सुन्नतों पर उनके बताये हुये रास्ते पर चला दे’’ आमीन या रब्बुल आलेमीन -
हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का तरीका
अंतिम ईषदूत हजरत मोहम्मद (सल्ल.) ने एक इंसान को जीवन गुजारने का जो तरीका बताया है जिसे हम इस्लामी शिष्टाचार या इस्लामी जीवन के आदाब / आचार कहते हैं, जिस पर अमल करने पर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) ने इंसानियत को उभारा है और इन षिश्टाचार के आधार पर जीवन व्यतीत करने वाले को  मुसलमान यानि ‘आज्ञाकारी’ कहा है।

खाने-पीने के आदाब
1. खाने के आरम्भ मंे बिस्मिल्लाह कहना अ©र खाना खाने से फारिग होने पर अल्लाह की प्रशंसा करना अ©र सामने से खाना अ©र दाय्ांे हाथ से खाना, इस लिय्ो कि बाय्ााँ हाथ अधिकतर गंदगी की सफाई मंे इस्तेमाल होता है, उमर बिन अबी सलमा कहते है कि मंै अल्लाह के रसूल सल्लल्ललाहु अल्©हि वसल्लम की गोद मंे परवरिश पाने वाला एक लड़का था अ©र मेरा हाथ पलेट मंे इधर उधर फिरता था, तो मुझ्ा से रसूल सल्लल्लहु अल्©हि व सल्लम ने कहा कि ऐ बच्चे! अल्लाह का नाम लो (बिस्मिल्लाह पढ़ो) अ©र दाहिने हाथ से खाअ¨ अ©र उस में से खाअ¨ जो तुम्हारे क़रीब होे।)) (हदीस)

2. खाना किसी भी तरह का हो, उस मंे ऐब न निकाला जाय्ो, अबू हुरैरा रजि़य्ाल्लाहु अन्हु की इस हदीस के वजह से कि ((अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि व सल्लम ने भोजन मंे कभी ऐब नहीं निकाला, य्ादि चाहत हुई तो खा लिय्ाा अ©र पसन्द नहीं आय्ाा तो छोड़ दिय्ाा।)) (हदीस)

3. आदमी ज़रुरत से अधिक न खाय्ो पिय्ो, कुरान में अल्लाह तआला की इस आयत की वजह से है कि ((खाअ¨ अ©र पिय्ाो अ©र फुज़ूल खर्ची न करो, अल्लाह तआला फुज़ूल खर्ची करने वालांे को पसन्द नहीं करता।)) (सूरः आराफ: 31)

अ©र रसूल सल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि: ((आदमी नेे पेट से बुरा कोइ बर्तन नहीं भरा, ऐ आदम की अ©लाद! तुम्हारे लिय्ो चन्द लुक़्मे जिस से तुम्हारी कमर सीधी रह सके, काफी है, य्ादि अधिक खाना अनिवायर््ा हो तो एक तिहाई खाने के लिय्ो हो, एक तिहाई पीने के लिय्ो हो अ©र एक तिहाई साँस लेने के लिय्ो हो।)) (हदीस)

4.  बर्तन के अन्दर साँस न लेना अ©र उस में फूँक न मारना, अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजिय्य्ाल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि ‘‘नबी सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम ने बर्तन मंे साँस लेने य्ाा फूँक मारने से रोका है।)) (हदीस)

5. अकेला ना खाय्ो, बल्कि किसी के साथ मंे खाय्ो। एक व्य्ाक्ति ने रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम से प्रश्न किय्ाा कि हम खाते हंै, लेकिन पेट नहीं भरता है? आप ने पूछा कि एक साथ खाना खाते हो य्ाा अलग-अलग खाते हो? उसने उŸार दिय्ाा कि अलग अलग खाते हंै। आप ने कहा कि एक होकर खाना खाअ¨ अ©र अल्लाह का नाम लो, अल्लाह तुम्हारे भोजन मंे बरकत देगा।)) (हदीस)

6. जिस किसी व्य्ाक्ति की खाने की दावत ली गई हो अ©र उस के साथ कोई बिना दावत के जा रहा है तो दावत लेने वाले से उस के बारे मंे अनुमति लेनी चाहिय्ो, एक अंसारी आदमी जिनकी कुिन्नय्ात अबु शुएैब थी पाँच लोगांे के साथ आप सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम की दावत ली तो उनके साथ एक और आदमी आ गय्ाा, तो नबी सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम ने कहा कि य्ाह आदमी हम लोगांे के साथ चला आय्ाा है, य्ादि तुम चाहो तो उसको अनुमति दे दो अ©र चाहो तो लोटा दो। तो उह्नांे ने कहा कि नहीं, मंै ने उह्ने अनुमति दे दी।)) (हदीस)

अनुमति लेने के आदाब
इसके दो प्रकार हैं: घर के बाहर अनुमति लेना, जैसा कि कुरान में अल्लाह तआला का फरमान हैः
‘‘ऐ ईमान वालो! तुम अपने घरों के सिवाय दूसरे घरों में न दाखिल हो यहाँ तक कि तुम अनुमति ले लो और घर वालों पर सलाम कर लो।’’ (सूरतुन्नूर:27)

घर के भीतर अनुमति लेना, कुरान में अल्लाह तआला की इस आयत की वजह से है कि:
((अ©र जब तुम्हारे बच्चे बुलूगत को पहुँच जाय्ांे तो जिस प्रकार उनके अगले लोग इजाज़त माँगते हंै उह्ने भी इजाज़त माँग कर (घर में) आना चाहिय्ो।)) (सूरतुन्नूर:59)

इजाज़त मांगने वाला व्य्ाक्ति अपना परिचय्ा कराय्ो, इजाज़त
 मांगने में हठ न करे, ये मोहम्मद सल्लल्लहू अल्©हि वसल्लम के इस फरमान की वजह से है कि (( इजाज़त तीन बार माँगना है, य्ादि तुम्हंे इजाज़त मिल जाय्ो तो ठीक है, वर्ना फिर लौट जाओ।)) ( हदीस )

सलाम के आदाब
मोहम्मद सल्लल्लहू अल्©हि वसल्लम  ने लोगांे के बीच सलाम के फैलानेे पर उभारा है, सलाम से प्य्ाार व मुहब्बत पैदा होती है, रसूल सल्लल्लहु अल्©हि व सल्ल्म कहते हंै कि ((उस ज़ात कि क़सम! जिस के हाथ मंे मेरी जान है तुम जन्नत (स्वर्ग) मंे नहीं जा सकते य्ाहाँ तक कि ईमान ले आअ¨ अ©र मोमिन नहीं हो सकते य्ाहाँ तक कि आपस मंे प्य्ाार करने लगो। क्य्ाा मंै तुम्हंे ऐसी चीज़ न बतला दूँ कि जब तुम उसे करने लगोगे तो आपस मंे प्य्ाार करने लगोगे, अपने बीच सलाम को आम करो।)) ( हदीस)

जिस ने तुम्हंे सलाम किय्ाा है उसे सलाम का जवाब देना अनिवायर््ा है, कुरान में अल्लाह तआला की इस आयत की वजह से है किः ((अ©र जब तुम्हंे सलाम किय्ाा जाय्ो तो तुम उस से अच्छा जवाब दो य्ाा उन्हीं शब्दांे को लोटा दो।)) (सूरतुन्निसा:86)

  अ©र सलाम के अन्दर हुकूक को भी स्पष्ट कर दिय्ाा है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम ने फरमाया: ((सवार, पैदल चलने वाले को सलाम करे, पैदल चलने वाला, बैठने वाले को सलाम करे अ©र थोड़े लोग अधिक लोगांे को सलाम करंे।)) ( हदीस)


सभा के आदाब
   मज्लिस वालांे पर आते समय्ा अ©र निकलते समय्ा सलाम कहना, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि ((जब तुम मंे से कोई किसी बैठक मंे आय्ो, तो उसे चाहिय्ो कि वह सलाम करे, फिर य्ादि चाहे तो बैठ जाये, और जब वह उठकर जाने लगे तो सलाम करे, क्योंकि पहला दूसरे से अधिक हक़दार नही हंै।)) ( हदीस)

बैठक मंे कुशादगी पैदा करे, कुरान में अल्लाह तआला की इस आयत की वजह से है कि: ((ऐ मुसलमानो ! जब तुम से कहा जाय्ो कि बैठकांे में थोड़ी कुशादगी पैदा करो, तो तुम जगह कुशादा कर दिया करो, अल्लाह तुम्हंे कुशादगी देगा अ©र जब कहा जाय्ो कि उठ खड़े हो जाअ¨, तो तुम उठ खड़े हो जाअ¨, अल्लाह तआला तुम मंे से उन लोगांे के जो ईमान लाय्ो हैं अ©र जो ज्ञान दिय्ो गय्ो हैं पद बढ़ा देगा अ©र अल्लाह तआला (हर उस काम से) जो तुम कर रहे हो (भली भांति) खबरदार है।)) (सूरतुल मुजादला:11)

किसी व्य्ाक्ति को खडा़ करके उसकी जगह पर न बैठना, रसूल सल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि (( कोई व्य्ाक्ति किसी व्य्ाक्ति को उसकी जगह से उठाकर के न बैठे, लेकिन तुम जगह कुशादा कर दो।)) (हदीस)
जो अपनी जगह से उठकर चला जाय्ो अ©र फिर फिर वापस आय्ो तो वह उस का ज़्य्ाादा हक़दार है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((जो अपनी जगह से उठ जाय्ो फिर दोबारा वापिस आय्ो तो वह उसका ज्य्ाादा हक़दार है।)) (हदीस)

 बैठे हुय्ो लोगांे के बीच जुदाई न की जाय्ो, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((किसी व्य्ाक्ति के लिय्ो वैध नहीं है कि वह दो लोगांे के बीच उन की इजाज़त के बिना जुदाई पैदा करे।)) (हदीस)

  अगर तीन लोग हो तो दो लोग आपस मंे सरगोशी (चुपके-चुपके बात) न करंे, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((जब तुम तीन लोग हो, तो तीसरे को छोड़ कर दो लोग सरगोशी न करो य्ाहाँ तक कि लोगांे में मिल जाअ¨ ताकि उसे गम (चिन्ता) न हो।)) (हदीस)

  हमारी कोई मज्लिस (सभा) उसमें चाहे दो आदमी हो दो से ज्यादा , फुज़ूल काम में व्यस्त, अल्लाह के ज़िक्र, और दीन दुनिया के मामलों में भलाई की चीज़ों के अध्ययन से खाली न हो, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘जो लोग भी किसी ऐसी मज्लिस से उठते हैं जिस में वो अल्लाह का ज़िक्र नहीं करते हैं, तो वो गधे की लाश की तरह से उठते हैं, और यह उनके लिए हसरत और पछतावे का कारण होगा।’’ (हदीस)

 बैठक के आदाब (आचार) 
आखरी नबी हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का लाया हुआ इस्लाम किसी जगह मंे एकत्र होने वालांे के सामान्य भावनाअ¨ं का ध्य्ाान रखता है, अ©र य्ाह केवल इस लिए है कि बैठक एक ऐच्छिक और पसन्दीदा चीज़ बन जाए और उस से उपेक्षित लाभ प्राप्त हो सके, इसी तरह हर उस चीज़ को दूर करता है जो बैठक को घृणित बनाने का कारण बनता है, चुनाँचि इस्लाम अपने मानने वालांे को साफ सुथरा शरीर रखने का आदेश देता है ताकि किसी प्रकार की बदबू से सभा वालांे को तकलीफ ना हो, तथा उन्हें साफ सुथरे कपड़े पहनने का हुक्म देता है ताकि गन्दा मन्जर देख कर लोगांे मंे नफरत न पैदा हो, इसी तरह बात करने वाले की अ¨र पूरा ध्य्ाान देने अ©र उसकी बात न काटने का आदेश देता है, अ©र सभा के आखिर मंे बैठने अ©र लोगों की गर्दनें न फलांगने और उन्हें धक्का न देने का आदेश देता है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम मुसलमानो के एक  जुमा की नमाज़ मंे बात करते हुए फरमाते हैं:
((जिस ने जुमा के दिन स्नान किय्ाा अ©र मिस्वाक किय्ाा अ©र खुशबू लगाया य्ादि उसके पास मौजूद था अ©र अपना सबसे अच्छा कपड़ा पहना, फिर मस्जिद आय्ाा अ©र लोगांे की गर्दनें नहीं फलाँगा, फिर अल्लाह ने जितनी तौफीक़ दी नमाज़ पढ़ी, फिर इमाम के आने से लेकर नमाज़ के खत्म होने तक चुप रहा तो यह उस जुमा से लेकर पिछले जुमा तक के गुनाहांे का कफ्फारा होता है।)) (हदीस)

छींक और जम्हाई आने के आदाब
जिसे छींक आय्ो वह ‘अल्हम्दु लिल्लाह’ (हर प्रकार की प्रशंसा अल्लाह के लिए है ) कहे, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि कहते हंै कि ((जब तुम में से कोई छींके तो ‘अल्हमदु लिल्लाह’ कहे अ©र उसका भाई य्ाा साथी उसके जवाब मंे य्ार्हमुकल्लाह (अल्लाह तुम पर दया करे) कहे, जब वह ‘य्ारहमु-कल्लाह’ कहे, तो वह ‘य्ाह्दीकुमुल्लाह व युसलिहो बालकुम’ (अल्लाह तुम्हारा मार्ग दर्शन करे और तुम्हारी स्थिति सुधार दे) कहे। )) ( हदीस)

छींकने के आदाब में से यह भी है जिसे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया: ‘‘जब तुम में से किसी को छींक आए तो अपनी हथेलियों कोे अपने चेहरे पर रख ले, और अपनी आवाज़ धीमी कर ले।’’ ( हदीस)

  जिसे जम्हाई आय्ो वह अपनी शक्ति भर उसे रोके, इसलिय्ो कि जम्हाई सुस्ती की दलील है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के इस कथन के कारण कि ((अल्लाह क्षींक को पसन्द करता है अ©र जम्हाई को नापसन्द करता है। जब वह छींके अ©र ‘अल्हमदु लिल्लाह’ कहे तो हर सुनने वाले पर उसका जवाब देना अनिवायर््ा है, लेकिन जम्हाई श्©तान की अ¨र से है। अतः उसे अपनी ताक़त भर रोके, जब वह हा कहता है तो श्©तान उस से हँसता है।)) ( हदीस)

सभा मंे डकार नहीं लेना चाहिए, अब्दुल्लाह बिन उमर रजि़य्ाल्लाहु अन्हु के इस रिवायत की वजह से कि: ((रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के पास एक आदमी ने डकार लिया, तो आप ने उस से कहा कि: तुम हम से अपना डकार दूर रखो, इसलिय्ो कि दुनिय्ाा मंे लोगांे मंे जो अधिक आसूदा होगा वह क़िय्ाामत के दिन उन मंे अधिक भूखा होगा ))(हदीस)

बात-चीत के आदाब (आचार) 
बात करने वाले की बात को पूर्ण ध्य्ाान से सुनना अ©र बीच ही मंे उसकी बात न काटना, हजरत मोहम्मद (सल्ल.) आखरी हज हज्जतुल वदाअ् के अवसर पर रसूल सल्लल्लहु अल्©हि व सल्लम के इस फरमान की वजह से है कि((लोगों की बात ध्य्ाान पूर्वक सुनो।)) (हदीस)

स्पष्ट तरीके़ से बात करना ताकि मुखातब उस को समझ्ा सके, आईशा रजि़य्ाल्लाहु अन्हा से रिवाय्ात है, वह कहती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि व सल्लम की बात (वाज़ेह) स्पष्ट अ©र दो टूक होती थी, हर सुनने वाला उसे समझ्ा जाता था।)) (हदीस)

हर बात करने वाले अ©र मुखातिब का हँसमुख होना और हँसते हुए चेहरे के साथ मिलना, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((किसी भलाई को हक़ीर न समझ्ाो, अगरचि तुम्हारा अपने भाई से हँस मुख होकर भेंट करना ही हो।)) (हदीस)

मुखातब से मीठी बोल बोलना
  पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम फरमाते हैं: ‘‘मनुष्य के हर जोड़ के बदले उस के ऊपर हर दिन सदक़ा करना अनिवार्य है, दो लोगांे के बीच न्य्ााय्ा करना सद्क़ा है, आदमी की उसकी सवारी के बारे मंे मदद कर देना उसे उस पर सवार करा देना य्ाा उसका सामान रखवा देना सदक़ा है अ©र भली बात कहना सदका है अ©र नमाज़ के लिय्ो उठने वाला हर क़दम सदक़ा है अ©र रास्ते से तकलीफ देने वाली चीज़ हटा देना सदक़ा है।)) ( हदीस)

बीमार पुर्सी के आदाब
मोहम्मद सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम ने बीमार से भंेट करने के लिए जाने की रूचि दिलाई है अ©र उसे एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर हुकूक़ मंे शुमार किय्ाा है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि (( एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर पाँच हुकुक हंै; सलाम का जवाब देना, बीमार पुर्सी करना, जनाज़ा के पीछे जाना, दावत क़बूल करना छींकने वाले का जवाब देना)) (हदीस)

मुसलमानांे को बीमार की जिय्ाारत करने के लिय्ो रगबत दिलाते हुय्ो उसके बदले को स्पष्ट कर दिय्ाा है, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम ने कहा है कि ((जिसने किसी बीमार की इय्ाादत की तो बराबर वह जन्नत के फल चु्नता है। कहा गय्ाा कि: ऐ अल्लाह के रसूल! खुरफतुलजन्नह क्य्ाा है ? तो आप ने कहा कि उसके फल तोड़ना।)) (हदीस)

बीमार पुर्सी मंे मरीज़ के लिय्ो प्य्ाार व शफकत ज़ाहिर करना, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि (( सम्पूर्ण तीमार दारी य्ाह है कि तुम मंे से कोई अपना हाथ उस के माथे पर य्ाा हाथ पर रखे अ©र उस से उसका हाल मालूम करे।)) ( हदीस)

मरीज़ के लिय्ो दुआ करे, रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम कहते हंै कि ((जिसने किसी मरीज़ की इय्ाादत की जिस की मौत हाजि़र नहीं हुई है अ©र उसके पास सात बार कहा कि: मंै महान अल्लाह बडे़ अर्श वाले से सवाल करता हूँ कि तुम्हंे शिफा दे, तो अल्लाह उसे उस बीमारी से शिफा दे देगा।)) (हदीस)

मज़ाह (उपहास) के आदाब
हजरत मोहम्मद (सल्ल.) के लाये हुये दीन (जीवन गुजारने का तरीका ूंल व िस्पमि) इस्लाम के अन्दर जीवन, जाय्ाज़ हँसी-मज़ाक और दिल्लगी से परे नहीं है जैसा कि कुछ लोगांे का अनुमान है, हन्जला अल-उसेदी रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु से मेरी मुलाकात हुय्ाी, आप ने पूछा कि ऐ हन्ज़ला कैसे हो? हन्ज़ला कहते हंै कि, मंै ने कहा कि, मंै मुनाफिक़ हो गय्ाा। अबु बक्र ने तअज्जुब से पूछा कि तुम क्य्ाा कह रहे हो? हन्ज़ला ने कहा कि हम लोग रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के पास होते हंै, आप हम से जन्नत (स्वर्ग) अ©र जहन्नम (नर्क) का जिक्र करते हंै य्ाहाँ तक कि ऐसा लगता है कि वह हमारी आँखो के सामने है, जब हम रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के य्ाहाँ से निकल आते हंै तो हम लड़को-बच्चों अ©र धन दोलत के झ्ामेले मंे फँस जाते हैं अ©र हम ज़्य्ाादा गाफिल हो जाते हंै। अबु बक्र ने कहा कि अल्लाह की क़सम इसी तरह हमारी भी स्थिति होती है। हन्ज़ला कहते हंै कि मंै अ©र अबु बक्र रसूल सल्लल्लाहु अल्©हि वसल्लम के पास आय्ो, मंै ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम! हन्जला मुनाफिक़ हो गय्ाा। रसूल सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम ने कहा कि य्ाह क्य्ाा बात है? मंै ने कहा कि ऐ अल्लहा के रसूल! हम आप के पास होते हंै आप हम से स्वर्ग अ©र नर्क का जिक्र करते हंै य्ाहाँ तक कि ऐसा लगता है कि हम उसे अपनी आँखो से देख रहे हंै, लेकिन जब हम आप के पास से निकलते हंै तो हम बीवी बच्चांे अ©र धन दौलत के चक्कर मंे फँस जाते हंै अ©र हम ज्य्ाादा गाफिल हो जाते हंै। तो रसूल सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम ने कहा कि: क़सम है उस हस्ती की जिस के हाथ मंे मेरी जान है जिस स्थिति मंे तुम मेरे पास होते हो य्ादि उसी स्थिति मंे तुम बराबर रहो तो फरिश्ते तुम से तुम्हारे बिस्तरों पर अ©र तुम्हारे रास्तांे मंे मुसाफह करंेगे, लेकिन ऐ हन्जला एक घंटा और एक घंटा, आप ने इसे तीन बार फरमाया।’’ (हदीस)

रसूल सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम ने इस हदीस मंे स्पष्ट कर दिय्ाा कि जाय्ाज़ हँसी मज़ाक अ©र तफरीह मतलूब है, ताकि आदमी की रूह व जान चुस्त व फुर्त रहे। एक बार रसूल सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम के साथिय्ाों ने आप से प्रश्न किय्ाा कि, क्या आप हम से मज़ाक करते हंै, आप ने कहा: हाँ, लेकिन मंै सत्य्ा बात ही कहता हूँ। )) (हदीस)

जिस प्रकार बात से हँसी मज़ाक होती है उसी प्रकार कृत्य से भी मजाक, आप सल्लल्लहु अल्©हि वसल्लम अपने सहाबा से कृत्य द्वारा मज़ाह किया करते थे।  अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं: एक दीहाती आदमी जिस का नाम ज़ाहिर बिन हराम था पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उपहार (तोहफा) दिया करता था, जब वह वापस जाना चाहता तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके  लिए कोई चीज़ तैयार करते थे। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके बारे में कहाः ‘‘ज़ाहिर हमारे दीहाती और हम उनके शहरी (साथी) हैं।’’ अनस कहते हैं, एक दिन वह अपना सामान बेच रहे थे कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आये और उनके पीछे से उन्हें पकड़ लिया और वह आप को देख नही पा रहे थे। चुनांचे उन्हों ने कहाः यह कौन है? मुझे छोड़ दे। आप ने अपना चेहरा उनकी ओर किया, जब वह पहचान गए कि यह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं तो अपनी पीठ को आपके सीने से चिपकाने लगे। एक बार पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ‘‘यह ग़ुलाम कौन खरीदेगा ? ’’ज़ाहिर ने कहाः ऐ अल्लाह के पैग़म्बर आप मुझे सस्ता पाएंगे। आप ने फरमायाः ‘‘किन्तु तुम अल्लाह के निकट सस्ते नहीं हो’’ या पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाया कि ‘‘तुम अल्लाह के पास बहुमूल्य हो।’’। (हदीस)

  ऐसी दिल्लगी अ©र हँसी मजाक न की जाय्ो जिससे किसी को ठेस या तकलीफ पहुॅचे।
  हँसी-मज़ाक उसे सच्चाई के दाय्ारा से न निकाल दे कि वह लोगांे को हँसाने के लिय्ो झ्ाूठ बोले, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान की वजह से है कि  ((बरबादी है उसके लिय्ो जो बात करता है तो झूठ बोलता है ताकि लोगों को हँसाए, उसके लिए बरबादी है, उस  के लिय्ो बरबादी है )) (हदीस)

ताजि़य्ात (सान्त्वना) के आदाब 
मुर्दे के घर वालांे की तसल्ली अ©र उनके गम व मुसीबत को हल्का करने के लिय्ो ता’जि़य्ात मशरुअ् की गय्ाी है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((जो मोमिन अपने किसी भाई की मुसीबत मंे ता’जि़य्ात करता है, अल्लाह तआला क़िय्ाामत के दिन उसे करामत का जोड़ा पहनाय्ोगा।))( हदीस)

मुर्दा के घर वालांे के लिय्ो दुआ करना अ©र उन्हें सब्र करने अ©र सवाब की उम्मीद रखने पर उभारना, हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे थे कि आप के पास आप की किसी बेटी का क़ासिद आया कि वह आप को अपने बेटे को देखने के लिए बुला रही हैं जो जांकनी की हालत में है। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस आदमी से कहाः
‘‘वापस जाकर उन्हें बतला दो कि जो कुछ अल्लाह ने ले लिया वह निःसन्देह अल्लाह ही का है और जो कुछ उसने प्रदान किया है वह भी उसी का ही है, और हर चीज़ का उसके पास एक निश्चित समय है। इसलिए उनसे कहो कि वह सब्र करें और अल्लाह से अज्र व सवाब की उम्मीद रखें।’’
आप की बेटी ने क़ासिद को यह कह कर दुबारा भेजा कि उन्हों ने क़सम खा लिया है कि आप अवश्य उनके पास आयें। इस पर पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उठ खड़े हुए और सअद बिन उबादा और मुआज़ बिन जबल भी आप के साथ हो लिए। बच्चे को आप के सामने पेश किया गया, उसकी साँस ज़ोर-ज़्ाोर से चल रही थी गोया वह पुराने मशकीज़े में है। यह देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू जारी होगए। सअद ने कहाः ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! यह क्या है? आप ने फरमायाः ‘‘यह वह दया और रहमत है जिसे अल्लाह तआला ने अपने बन्दों के दिलों में डाल दिया है, और अल्लाह तआला अपने बन्दों में से दया व मेहरबानी करने वालों पर दया करता है’’। ( हदीस)

मुर्दे की बख़्शिश के लिय्ो दुआ की जाय्ो, हमारे बुज़ुर्ग इस दुआ को पढ़ना मुस्तहब समझ्ाते थे,  ‘‘अल्लाह तुम्हारे सवाब को बढा़य्ो अ©र तुम्हें अच्छी तसल्ली दे अ©र तुम्हारे मुर्दे को क्षमा कर दे।’’
मुर्दे के घर वालांे के लिय्ो खाना तैयार करना मुस्तहब है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान की वजह से है कि: ((आले जा’फर के लिय्ो खाना पकाओ, इस लिय्ो कि उन्हंे मसरुफ करने वाली चीज पेश आगई है।)) (हदीस)

सोने के आदाब
अल्लाह का नाम ले कर दाय्ांे करवट लेटना अ©र जिस जगह सोने जा रहा है, वहाँ जाॅच कर ले कि कोई तकलीफदे चीज़ तो नहीं है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते है कि ((जब तुम मंे से कोई अपने बिस्तर पर सोने आय्ो तो अपने तहबंद के किनारे सेे अपना बिस्तर झ्ााड़ ले अ©र अल्लाह का नाम ले, इस लिय्ो कि वह नहीं जानता है कि उसने अपने बाद अपने बिस्तर पर क्य्ाा छोड़ा है? अ©र जब सोय्ो तो दाय्ों करवट सोय्ो अ©र कहे कि
‘‘ऐ मेरे रब! तेरी ज़ात पाक है, मैं ने तेरे नाम पर अपना पहलू रखा है अ©र तेरे नाम पर उठाऊँगा, य्ादि तू मेरी जान ले ले तो तू उसे बख्श देना अ©र य्ादि तू उसे छोड़ दे तो अपने नेक बन्दांे की तरह उसकी हिफाज़त करना।’’)) ( हदीस)

जब सो कर उठे तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित दुआ पढे़, हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवाय्ात है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात मंे जब अपने बिस्तर पर आते तो अपना हाथ गाल के नीचे रखते फिर कहते कि ‘‘ऐ अल्लाह! मंै तेरे नाम से मरता अ©र जीता हुँ,’’ और जब सो कर उठते तो कहते कि ‘‘तमाम प्रशंसा उस अल्लाह के लिय्ो है जिसने हमंे मारने के बाद जीवित किय्ाा अ©र पुनः उसी की अ¨र लौटकर जाना है।’’)) ( हदीस)

ज़रुरत की हालत के सिवाय आदमी रात में जल्दी सोने की कोषिष करे, इस लिय्ो कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवाय्ात है कि आप ((इशा की नमाज़ से पहले सोना अ©र इशा के बाद बात-चीत करना नापसन्द करते थे।)) ( हदीस)

पेट के बल सोना मकरुह है, अबु हुरैरा से रिवाय्ात है कि ((रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का गुज़र पेट के बल सोये हुये एक व्य्ाक्ति के पास से हुआ, आप ने उसे पैर से कचोका लगाय्ाा अ©र कहा इस तरह सोने को अल्लाह पसन्द नही करता है।)) ( हदीस )

एहतिय्ाात और सावधान अपनाते हुए खतरे की चीजांे से बचना, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((आग तुम्हारा दुश्मन है, जब तुम सोवो तो इसे बुझ्ाा दिय्ाा करो।)) ( हदीस )

शौच (पेशाब-पैखाना करने) के आदाब
शौचालय्ा मंे घुसने से पहले अ©र निकलने के बाद बिस्समिल्लाह और दुआ पढ़ना, अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवाय्ात है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शौचालय्ा मंे घुसते थे तो कहते कि ((बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल खुब्से वल खबाइसे।)) (हदीस)

अ©र हजरत अनस ही से रिवाय्ात है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शौचालय्ा से निकलते थे तो कहते थे कि अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अज़्हबा अन्निल अज़ा व आफानी।)) (हदीस)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शौचालय से बाहर निकलते तो ‘ग़ुफरानका’ (मैं तेरी क्षमा चाहता हूँ) पढ़ते थे।’’ (हदीस)

पेशाब-पैखाना करते समय्ा क़िबला की अ¨र मुँह करे न ही पीठ करे, तथा लोगांे की निगाहांे से छुप जाय्ो, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((जो शौच को जाय्ो वह पर्दा करे।)) (हदीस)

गन्दी चीज़ों मंे दाय्ााँ हाथ न इस्तेमाल करे, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((जब तुम मंे कोई पिय्ो तो बर्तन मंे साँस न ले, जब कोई शौचालय्ा को आय्ो तो अपने आज़ा को दाहिने हाथ से न छुय्ो अ©र जब गन्दगी साफ करे तो दाहिने हाथ से न करे।)) (हदीस)

शौच के बाद अगली पिछली दोनांे शरमगाह को पहले ढेले अ©र फिर पानी से साफ करे, अ©र य्ाही सर्वश्रेष्ठ है, य्ाा नहीं तो दोनांे मंे से किसी एक से साफ करे, लेकिन पानी से सफाई करना बेहतर है, इस लिय्ो कि इस से अधिक सफाई होती है।

रास्ता के आदाब:
रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रास्ता के आदाब को स्पष्ट करते हुए फरमाया: ‘‘रास्तांे मंे बैठने से परहेज़ करो।’’ सहाबा-ए-किराम ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! रास्ते मंे बैठना हमारे लिय्ो अनिवायर््ा है उसमंे हम बैठकर बातें करते हंै। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा कि ‘‘जब तुम बैठने पर इसरार कर रहे हो तो रास्ते का हक़ अदा करो।’’ लोगांे ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! रास्ते का हक़ क्य्ाा है? आप ने कहा कि ‘‘निगाह नीची रखना, लोगांे को तकलीफ न पहुँचाना, सलाम का जवाब देना, भलाई का आदेश करना अ©र बुराई से रोकना।)) (हदीस)

अ©र एक दूसरी हदीस मंे है कि ‘‘तुम मुहताज की सहाय्ाता करो अ©र भटके हुय्ो को राह दिखाओ।’’ ( हदीस)

रास्ते की सफाई का ख्य्ााल रखे अ©र सार्वजनिक लाभ वाली चीजांे को नुक़सान न पहुँचाय्ो, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते है कि ((दो ला’नत करने वाली चीजांे से बचो, लोगांे ने कहा कि वह दोनांे क्य्ाा हैं? आप ने कहा कि जो व्य्ाक्ति लोगांे के रास्ते मंे य्ाा उनके साय्ाा हासिल करने की जगह मंे पाखाना कर देता है।)) (हदीस)

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने स्थिर (ठहरे हुये) पानी में पेशाब करने, सार्वजनिक रास्ते, लोगों के छाया हासिल करने की जगहों और पानी के घाट(नदी, तालाब, समुद्र के किनारे) पर शौच करने से रोका है। अपने साथ कोई ऐसी चीज़ लेकर न चले जिस से दूसरे को तकलीफ पहुँचे।

खरीदने बेचने (क्रय-विक्रय) के आदाब
खरीदारी के अन्दर असल चीज़ हलाल होना है, इसलिय्ो कि इस मंे बेचने अ©र खरीदने वाले के बीच नफा का तबादला होता है लेकिन किसी एक पक्ष य्ाा दोनांे का घाटा हो रहा हो तो ऐसी स्थिति मंे हलाल से हराम हो जाता है, कुरान में अल्लाह तआला की इस फरमान की वजह से है कि,
((ऐ मोमिनो! तुम अपने माल आपस मंे नाहक़ तरीक़े से न खाअ¨।)) (सूरतुन्निसा:29)

व्य्ापार को हजरत मोहम्मद (सल्ल.)  ने अफजल अ©र बेहतर कमाई बतलाय्ाा है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किय्ाा गय्ाा कि सबसे अफजल अ©र बेहतर कमाई कौन सी है? आप ने कहा कि ‘‘आदमी का अपने हाथ से काम करना और हर मबरुर (मक़बूल) व्य्ाापार।’’ (हदीस)

इस्लाम ने व्य्ाापार के अन्दर अमानत पर उभारा है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((सच्चा अमानतदार मुसलमान व्य्ाापारी क़िय्ाामत के दिन शहीदों के साथ होगा।)) (हदीस )

सामान के अन्दर य्ादि कोई छुपी हुई ऐब मौजूद है तो उसे स्पष्ट करदेना, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((किसी चीज़ के बेचने वाले के लिय्ो उसके ऐब को छुपाना हलाल नहीं है अ©र उस ऐब के जानने वाले के लिय्ो भी छुपाना जाय्ाज़ नहीं है।)) (हदीस)

सामान के अन्दर धोखा-धड़ी न करना अ©र खरीदार से सामान के ऐब न छुपाना, अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवाय्ात है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अनाज के ढेर से गुजरे, आप ने उसके अन्दर अपना हाथ घुसाय्ाा आप ने तरी महसूस की, आप ने अनाज वाले से कहा कि य्ाह क्य्ाा माजरा है? उसने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! इस पर बारिश होगई थी, आप ने कहा कि तुम ने उसे ऊपर क्य्ाांे नहीं कर दिय्ाा? ताकि लोग उसे देखते, जिसने धोखा अ©र फराड किय्ाा वह हम मंे से नहीं।)) (हदीस )

सत्य्ा बोलना अ©र झ्ाूट से परहेज़ करना रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ((खरीदने व बेचने वालांे को इख्तिय्ाार है जब तक वह अलग न हो जाय्ांे, य्ादि वह दोनांे सत्य्ा बोलते हंै अ©र सामान के बारे मंे पूरी बात स्पष्ट कर देते हंै तो उन के खरीद व फरोख्त मंे बरकत होती है अ©र य्ादि वह ऐब छुपाते हंै अ©र झ्ाूठ बोलते हंै तो उन दोनों के खरीद व फरोख्त की बरकतें खत्म हो जाती हैं।)) (हदीस)

खरीद व फरोख्त मंे नरमी का बरताव करना, इसलिय्ो कि यह बेचने अ©र खरीदने वाले के बीच ता’ल्लुकात के मजबूत होने का एक साधन है अ©र भौतिक लाभ जो भाई चारे की राह का रोड़ा है उस का तोड़ है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हंै कि ‘‘अल्लाह उस व्य्ाक्ति पर दया करे जो बेचने, खरीदने अ©र कर्ज के मुतालबे मंे नर्मी अपनाता है।)) (हदीस)

कोई सामान बेचते समय क़सम न खाना, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान की वजह से है कि ((बेचने में अधिक क़सम खाने से बचो, इस लिय्ो कि यह व्यापार को बढ़ावा देता है लेकिन बरकत को मिटा देता है।)) (हदीस)

यह चन्द इस्लामी आदाब (शिष्टाचार) हैं, इनके अतिरिक्त इंसानी ज़िन्दगी के हर कार्यक्षेत्र और हर मामलें मे हमें अल्लाह के नबी हजरत मोहम्मद (सल्ल.) की रहनुमाई की है, इतनी पतली किताब में सब बयान करना मुष्किल है। हमारे लिय्ो इतना जान लेना काफी है कि मानव जीवन की व्यक्तिगत और सार्वजनिक मामलों से संबंधित कोई भी ऐसी चीज़ नहीं जिसके बारे में कुर्आन य्ाा हजरत मोहम्मद (सल्ल.) की हदीस में कोई रहनुमाई (निर्देश) मौजूद न हो, जो उस को निर्धारित और व्यवस्थित करती है। यह सब केवल इस लिए है ताकि दुनिया में रहनें वाले हर इंसान की ज़िन्दगी का हर लम्हा अल्लाह की इबादत का प्रतीक हो जिससे वह इस दुनिया में भी कामयाब हो  और आखेरत (परलोक) में भी कामयाबियाॅ उसका कदम चूॅमें ।

ऐ अल्लाह ! हम सब को सच का साथी और सच का दाई बना दे , ज़ेहनी , कल्बी सुकून अता कर और आखेरत में कामयाब कर ....... आमीन या रब्बुल आलेमीन

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