रविवार, 12 जनवरी 2014

विश्व-उद्धारक Savior of Universe -3

       यह व्यक्ति जिन लोगों में पैदा हुआ, जिनमें बचपन गुज़रा, जिनके साथ पलकर जवान हुआ, जिनसे उसका मेल-जोल रहा, जिनसे उसके व्यवहार और संबंध रहे, आरंभ ही से स्वभाव में, आचरण में वह उन सबसे भिन्न दिखाई देता है। वह कभी झूठ नहीं बोलता। उसकी सत्यवादिता पर जाति गवाही देती है। उसके किसी बुरे से बुरे शत्रु ने भी कभी उस पर यह दोष नहीं लगाया कि उसने अमुक अवसर पर झूठ बोला था। वह किसी से गलत बात नहीं करता। किसी ने उसके मुख से कभी गाली या कोई गन्दी बात नहीं सुनी। वह लोगों से हर प्रकार के व्यवहार करता है, मगर कभी किसी से कड़वी बात और तू-तू, मैं-मैं का अवसर नहीं आता। उसकी बोली में कटुता की जगह मिठास है और वह भी ऐसी कि जो उससे मिलता है उसका हो जाता है। वह किसी से दुर्व्यवहार नहीं करता। किसी का हक नहीं मारता। वर्षों सौदागरी करने पर भी किसी का एक पैसा भी अनुचित ढंग से नहीं लेता। जिन लोगों से उसके संबंध होते हैं वे सब उसकी सत्यता पर पूर्ण विश्वास रखते हैं। समस्त जाति उसको ‘‘अमीन’’ (धरोहर-रक्षक एवं सत्यवादी) कहती है। शत्रु तक उसके पास अपने कीमती माल रखवाते हैं और वह उनकी भी रक्षा करता है। निर्लज्ज लोगों के बीच वह ऐसा लजीला है कि किसी ने उसको नंगा नहीं देखा। दुराचारियों में वह ऐसा सदाचारी है कि कभी किसी कुकर्म में लिप्त नहीं होता। शराब और जुआ को हाथ तक नहीं लगाता, असभ्य लोगों के बीच वह ऐसा सभ्य है कि हर बेहूदगी और गन्दगी से घृणा करता है और उसके हर काम में पवित्रता और सुथराई पाई जाती है। पाषाण-हृदयों के बीच वह ऐसा सहृदय है कि हर एक के दुख-दर्द में सम्मिलित होता है। अनाथों और विधवाओं की सहायता करता है। यात्रियों की सेवा करता है। किसी को उससे दुख नहीं पहुँचता। वह दूसरों के लिए स्वयं दुख उठाता है। बर्बरों के बीच वह ऐसा शान्तिप्रिय है कि अपनी जाति में विद्रोह और रक्तपात का बाज़ार गर्म देखकर उसको दुख होता है और अपने कबीले की लड़ाइयों से दामन बचाता है और संधि के प्रयत्नों में आगे-आगे रहता है। मूर्ति-पूजकों के बीच उसकी अन्तरआत्मा इतनी सीधी और बुद्धि इतनी शुद्ध है कि धरती और आकाश में कोई चीज़ उसे पूजने योग्य दिखाई नहीं देती। किसी प्राणी के आगे उसका सिर नहीं झुकता। मूर्तियों के चढ़ावे का भोजन भी ग्रहण नहीं करता। उसका हृदय आप ही आप शिर्क (अनेकेश्वरवाद) और सृष्टि-पूजा से घृणा करता है।
                उस वातावरण में वह व्यक्ति ऐसा दिखाई देता है, कि जैसे घटाटोप अंधेरे में एक दीपक प्रकाशमान हो या पत्थरों के ढेर में एक हीरा चमक रहा हो। लगभग चालीस वर्ष तक ऐसा ही पवित्र, स्वच्छ और शिष्टतापूर्ण जीवन व्यतीत करने के बाद उसके जीवन में एक परिवर्तन उत्पन्न होता है और वह इस अंधकार से घबरा उठता है जो उसे हर ओर से घेरे हुआ था। वह मूर्खता, अनैतिकता, दुश्चरित्रता, दुर्व्यवस्था, व्यक्ति-पूजन और मूर्ति-पूजा के उस भयानक समुद्र से पार निकल जाना चाहता है जो उसको घेरे हुए है। उस क्षेत्र में कोई वस्तु भी उसको अपनी प्रकृति (Nature) के अनुकूल दिखाई नहीं देती। वह सबसे अलग होकर आबादी से दूर पहाड़ों की गुफा में जाकर बैठने लगता है। एकांत और शान्ति के वातावरण में कई-कई दिन गुज़रते हैं। रोजे़ रख-रखकर अपनी आत्मा, अपने हृदय और मस्तिष्क को और अधिक शुद्ध करता है, सोचता है, विचार करता है और कोई ऐसा प्रकाश ढूँढता है जिससे वह चारों ओर छाई हुई अंधियारी को दूर कर दे। ऐसी शक्ति प्राप्त करना चाहता है जिससे वह बिगड़े हुए संसार को फिर से संवार दे।
            यकायक एक दिन स्थिति में एक महान परिवर्तन होता है। प्रकाश आ जाता है, शक्ति भर जाती है, सारी इंसानियत की भलाई का संदेश आ जाता है। वह गुफा की शून्यता से निकल कर अपनी जाति के पास जाता है। उससे कहता है कि ये मूर्तियाँ, जिनके आगे तुम झुकते हो, सब तथ्यहीन वस्तुएँ हैं। इन्हें छोड़ दो। कोई वृक्ष, कोई पत्थर, कोई मृत-आत्मा, कोई नक्षत्र इस योग्य नहीं कि तुम उसके आगे सिर झुकाओ, उसकी पूजा और उसकी उपासना करो, उसका आज्ञापालन और उसकी हुक्म मानो। यह पृथ्वी, यह चाँद, यह सूर्य, यह नक्षत्र, इस धरती और आकाश की सारी वस्तुएँ एक ईश्वर (अल्लाह) की सृष्टि (Creation) हैं। वही तुम्हारा और इन सबका पैदा करने वाला है। वही जीविका देने वाला है। वही बिमार करने वाला अच्छा करने वाला, मारने और जिलाने वाला, इज्ज़त और ज़िल्लत देने वाला है। सब कुछ छोड़कर उसी की पूजा करो। सबको छोड़कर उसी की आज्ञा मानो और उसी के आगे सिर झुकाओ। यह चोरी, यह लूटमार, यह हिंसा और रक्तपात, यह अन्याय और अत्याचार, यह कुकर्म, जो तुम करते हो, सब पाप हैं। इन्हें छोड़ दो। ईश्वर (अल्लाह) इन्हें पसन्द नहीं करता। सच बोलो, न्याय करो। किसी की जान न लो, किसी का माल न छीनो। तुम सब मनुष्य हो। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। न कोई नीचता का कलंक लेकर पैदा हुआ और न कोई बड़ाई का तमगा लेकर संसार में आया। श्रेष्ठता और बड़ाई वंश, जाति और गोत्र में नहीं ईश्वर (अल्लाह) की आज्ञा पर चलने, अच्छे काम करने और पवित्र जीवन बिताने में है।
                 जो मनुष्य ईश्वर (अल्लाह) से डरता है, पुण्य-आत्मा और पवित्र है वही उत्तम श्रेणी का मनुष्य है। जो ऐसा नहीं वह कुछ भी नहीं। मरने के बाद तुम सबको अपने ईश्वर (अल्लाह) के पास उपस्थित होना है। तुम में से हर व्यक्ति अपने कर्मों का ईश्वर (अल्लाह) के सामने उत्तरदायी है। वह ईश्वर (अल्लाह) जो सब कुछ देखता और जानता है, तुम कोई चीज़ उससे छिपा नहीं सकते। तुम्हारे जीवन का कर्मपत्र (हर सेकेण्ड का रिकार्ड) उसके सम्मुख बिना किसी कमी-बेशी के पेश होगा और उसी कर्मपत्र (आमालनामा) के अनुसार वह तुम्हारे परिणाम का निर्णय करेगा। उस सच्चे न्यायी के यहाँ न कोई सिफारिश काम आएगी, न रिश्वत चलेगी, न किसी का वंश पूछा जाएगा। वहाँ केवल ईमान और अच्छे कर्म की पूछ होगी। जिसके पास यह दौलत होगी वह स्वर्ग में जाएगा और जिसके पास इनमें से कुछ भी न होगा वह असफल होकर नरक में डाला जाएगा। यही है वह सीधा सीधा सन्देश।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें