मंगलवार, 14 जनवरी 2014

जिसने इंसान को इंसान बनाया : Prophet Muhammad (S) Who, Civilized the People

जिसने इंसान को इंसान बनाया

   ईश्वर (अल्लाह)ने इंसान पर अनगिनत उपकार, अनुगृह एवं अनुकम्पाएँ की। उसने संसार के सभी प्राणियों में इंसान को सर्वश्रेष्ठ (अष्रफुल मख्लूकात)बनाया और उसे सोच-विचार एवं समझ-बूझ की क्षमता प्रदान की। इंसान ने समन्दरों पर फतह पाई। आसमानों को जीत लिया और जमीं के जर्रे-जर्रे पर अपने जोश-ओ-गुरूर की दास्तान लिख डाली।
      कहीं ऊँचे- ऊँचे महल तामीर किए, कहीं खामोश गोशे में फूलों की क्यारियाँ सजा उसे बगीचे की शक्ल दे डाली। कहीं महलों-मीनारों का निर्माण कराया तो कहीं कालजयी भवन बनवा कर वक्त की पेशानी पर अपनी जीत नक्श कर डाली। सब कुछ था, फिर क्या कमी थी? हाँ! कहीं कोईं कमी जरूर थी! इस कमी का ही परिणाम था कि मानव मन हमेषा सोचता रहा  और आज भी सोचता है .... वह कौन है? कहाँ से आया है? और उसे कहाँ लौट कर जाना है?
      बस जीवन के प्रति इस नन्ही-सी चिंता ने ही तो जन्मा दुनिया के  इतिहास के एक कालजयी विचारक को, जिसने विराट सत्ता के सापेक्ष, मनुष्य के अस्तित्व का आकलन कर उसके लिए जीने की आसान राह स्पष्ट की।
      जी हाँ! दुनिया उस महान चिन्तक , विचारक , इंसानियत के रहनुमा को हजरत मोहम्मद (सल्ल.)के नाम से जानती है। यह वही हजरत मोहम्मद (सल्ल.) हैं जिसने इंसान को बताया -
‘जब सूरज लपेट दिया जाएगा,     सारे तारे झड़ जाएँगे ,जाने जिस्मों से जोड़ दी जाएँगी, समंदर उबल पड़ेंगे , आसमान खींच लिया जाएगा, तब हर जान समझ लेगी ,कि वह (अपने ईश्वर के समक्ष)  क्या लाई है?’’
हजरत मोहम्मद (सल्ल.) ने सबसे पहले इंसान के मन में यह विश्वास जगाया कि सृष्टि की व्यवस्था (न्दपअमतेंस ैलेजमउ) हकीकत में जिस सिद्धांत पर कायम है, इंसान की जीवन व्यवस्था (Way of life)भी उसके अनुकूल हो, क्योंकि इंसान इस ब्रह्मांड का एक अंश है और अंश का कुल के विरुद्ध होना ही खराबी की जड़ है। दूसरे लफ्जों में खराबी की असल जड़ इंसान की अपने प्रभु से बगावत है।
      इस बगावत को जड़ से उखाड़ फेंकने और इसके हर रूप को नेस्तनाबूत करने के लिये आपने लोगो को ‘‘ला-इलाह इल्लल्लाह ...’’ की दावत दी। आपने बताया कि अल्लाह पर ईमान केवल एक दार्शनिक सिद्धांत नहीं बल्कि यही वह बीज है, जो इंसान के मन की जमीन में जब बोया जाता है तो इससे पूरी जिंदगी में ईमान की बहार आ जाती है। और जब कोई इंसान   ये मान लेता है अल्लाह के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं....और ये जान लेता है कि ईष्वर के अलावा किसी और के आगे मेरा सर नहीं झुकना चाहिये तो वह हकीकत में अष्रफुल मख्लूकात हो जाता है, वह अपनी दिल की निगाहों से ये जान चुका होता है कि इज्जत देने वाला, बेइज्जत करने वाला, मारने वाला , जिलाने वाला, घाटा देने वाला , फायदा देने वाला, पूरे ब्रह्म्माण्ड  की व्यवस्था चलाने वाला कौन है... और इस खुदा के प्रति उसकी मखलूक के प्रति, समस्त जीवित और निर्जीव प्राणियों के प्रति उसका कर्तव्य क्या हैं।     
      जिस मन में ईमान है, वह यदि एक जज होगा तो ईमानदार होगा। एक पुलिसमैन है तो कानून का रखवाला होगा एक व्यापारी है तो ईमानदार व्यापारी होगा। सामूहिक रूप से कोई राष्ट्र खुदापरस्त होगा तो उसके नागरिक जीवन में, उसकी राजनीतिक व्यवस्था में, उसकी विदेश राजनीति, उसकी संधि और जंग में खुदा परस्ताना अखलाक व किरदार की शान होगी। यदि यह नहीं है तो फिर खुदापरस्ती का कोई अर्थ नहीं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें