सोमवार, 13 जनवरी 2014

पवित्र आचरण : Mominana Etiquettes : पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल) : Last Prophet Hazrat Muhammad ( SAW)

           झूठा मनुष्य तो बड़ा बनने के लिए दूसरों के कारनामों का क्रेडिट भी ले लेने में संकोच नहीं करता, जिनके वास्तविक स्रोत का पता सरलता से चल जाता है, लेकिन यह व्यक्ति इन कृतियो (Creation and Work) का अपने साथ संबंध प्रकट नहीं करता, जिनको अगर वह अपनी कृतियाॅ कहता तो कोई उसको झुठला न सकता था, क्योंकि किसी के पास उनके वास्तविक स्रोत तक पहुँचने का कोई साधन ही नहीं था। सच्चाई की इससे अधिक खुली हुई दलील और क्या हो सकती है? उस व्यक्ति से अधिक सच्चा कौन होगा, जिसको एक अत्यंत छिपे हुए आधार से ऐसे अनुपम चमत्कार प्राप्त हों और वह बेहिचक अपने वास्तविक स्रोत का पता दे दे। बताइए, क्या कारण है कि हम उसकी सत्यता को स्वीकार न करें?
असल कारनामा
           जानकार लोग जानतें हैं, कि अल्लाह के पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल) इन्सानियत के उस सर्वश्रेष्ठ गिरोह से संबंध रखते हैं जो आरंभ से मानव-जाति को खुदापरस्ती और सदाचरण की शिक्षा देने के लिए उठता रहा है। ‘एक’ खुदा की बन्दगी और पवित्र आचरण (Mominana Etiquettes) की शिक्षा जो हमेशा दुनिया के सच्चे पैगम्बर, ऋषि और मुनि देते रहे हैं, वही हज़रत मुहम्मद (सल्ल) ने भी दी है। उन्होंने किसी नये खुदा की कल्पना पेश नहीं की और न किसी निराले आचरण की शिक्षा ही दी है, जो उनसे पहले के पथ-प्रदर्शकों (नबियों) की शिक्षा से भिन्न हो। फिर सवाल यह है कि उनका वह असली कारनामा क्या है जिसकी वजह से उन्हें मानव-इतिहास में सरवरे आलम  और रहमतुल-लिल-आलेमीन सदभावदूत, विश्व उद्वारक, विश्व रहनुमा (Universal Leader)माना जाता है।

         इस सवाल का संक्षिप्त जवाब यह है कि बेशक हज़रत मुहम्मद (सल्ल) से पहले इन्सान इस बात से परिचित था कि खुदा है और उसकी खुदाई में कोई दूसरा शरीक नहीं है, लेकिन इस बात से पूरी तरह परिचित न था कि इस दार्शनिक वास्तविकता का मानवी-नैतिकता से क्या संबंध है। इसमें शक नहीं कि इन्सान को नैतिकता के बेहतरीन सिद्धांतों की जानकारी थी, मगर उसे स्पष्ट रूप से यह पता न था कि जीवन के विभिन्न विभागों और पहलुओं में, इन नैतिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप किस तरह दिया जाना चाहिए। खुदा पर ईमान, नैतिक सिद्धांत और व्यावहारिक जीवन ये तीन अलग-अलग चीजें़ थीं। जिनके बीच कोई तार्किक-संबंध, कोई गहरा ताल्लुक और कोई फलदायक रिश्ता मौजूद न था। यह सिर्फ हज़रत मुहम्मद (सल्ल) हैं, जिन्होंने इन तीनों को मिलाकर एक लड़ी में पिरो दिया और उनके मेल से एक पूर्ण संस्कृति और सभ्यता का नक्शा केवल कल्पना-जगत में नहीं, बल्कि व्यवहार की दुनिया में स्थापित करके दिखा दिया।

           उन्होंने बताया कि खुदा पर ईमान (बिना देखे मानना) केवल एक दार्शनिक सत्य को मान लेने का नाम नहीं है, बल्कि इस ईमान का स्वभाव अपनी असल प्रकृति ही के अनुसार एक विशेष प्रकार के अख्लाक और नैतिकता की माँग करता है और इस नैतिकता का प्रदर्शन इन्सान के व्यावहारिक जीवन की सम्पूर्ण नीति में होना चाहिए। ईमान एक बीज के समान है जो इन्सान के दिल में जड़ पकड़ते ही अपनी प्रकृति के अनुरूप व्यावहारिक जीवन रूपी एक पूरे वृक्ष की रचना शुरू कर देता है। और वृक्ष के तने से लेकर उसकी शाखाओं और पत्ती-पत्ती तक में नैतिकता का वह जीवन-रस जारी हो जाता है, जिसके स्रोत बीज के रेशों से उबलते हैं। जिस तरह यह संभव नहीं है कि ज़मीन में बोयी तो जाए आम की गुठली और उससे निकल आये नींबू का पेड़, इसी तरह यह भी संभव नहीं है कि दिल में बोया तो गया हो खुदापरस्ती और ईश्वरवाद का बीज और उससे पैदा हो जाए एक भौतिकवादी जीवन, जिसकी नस-नस में चरित्रहीनता और अनैतिकता की रूह फैली हो।

          ईश्वरवाद से पैदा होने वाले अख््लाक और अनेकेश्वरवाद, नास्तिकता या भौतिकवाद से पैदा होने वाले अख्लाक बराबर नहीं हो सकते। जीवन के ये सारे दृष्टिकोण अपना अलग-अलग स्वभाव रखते हैं और हर एक का स्वभाव दूसरे से भिन्न नैतिकता की अपेक्षा करता है। फिर जो अख्लाक ईश्वरवाद से जन्म लेते हैं वे सिर्फ एक खास तपस्वी एंव जप-जप करने वाले गिरोह के लिए खास नहीं हैं कि केवल खानकाह और मठों की चारदीवारी और एकांत ही में उनका प्रदर्शन हो सके। उनको व्यापक रूप में पूरी इन्सानी ज़िन्दगी पर और उसके हर-हर पहलू पर चरितार्थ होना चाहिए।
       
           एक व्यापारी ईश्वरवादी है तो कोई कारण नहीं कि उसके कारोबार में उसकी ईश्वरवादी नीति सामने न आए। अगर एक जज ईश्वरवादी है तो अदालत की कुर्सी पर, और एक पुलिसमैन ईश्वरवादी है तो पुलिस पोस्ट पर उससे ईश्वरवादी नीति के विरुद्ध किसी चीज़ के ज़ाहिर होने की आशा नहीं कि जा सकती। और इसी तरह अगर कोई कौम या समुदाय ईश्वरवादी है तो उसके नागरिक जीवन में, उसकी देश-व्यवस्था में, उसकी विदेश-नीति में और उसके युद्ध और संधि में ईश्वरवादी नीतियों और आचरण का प्रदर्शन होना चाहिए। वरना उसका ईश्वर को मानने का दावा निरर्थक होने के साथ खुद के साथ किया धोखा होगा।

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