रविवार, 12 जनवरी 2014

Savior of Humanity मानवता का रक्षक

इन सब बातों के साथ, वह अपनी मनोआकांक्षा पर इतना काबू रखता था, बल्कि वह इतना इच्छारिहत था कि जब वह देश भर का बादशाह हो गया, उस समय भी वह जैसा पहले था वैसा ही रहा। फूस के छप्पर में रहता था, चटाई पर सोता था, मोटा-झोटा पहनता था, निर्धनों का-सा भोजन करता था, उपवास तक कर जाता था, रात-रात भर अपने ईश्वर की बन्दगी (तहज्जुद की नमाज़) में खड़ा रहता था, गरीबों और मुसीबत के मारों की सेवा करता था, एक मज़दूर की तरह काम करने में भी उसको हिचक थी। अन्तिम समय तक उसके भीतर बादशाही के घमंड और अमीरी की शान और बड़े आदमियों के से दंभ की तनिक भी गंध भी उत्पन्न हुई। वह एक साधारण आदमी की भाँति लोगों से मिलता था, उनके दुख-दर्द में शामिल होता था, जनता के बीच इस प्रकार बैठता था कि अपरिचित आदमी को यह जानना कठिन होता था कि इस सभा में रहमतुल-लिलआलेमीन सरवरे कायनात कौन है। इतना बड़ा आदमी होने पर भी छोटे से छोटे आदमी के साथ ऐसा व्यवहार करता था मानो वह उसी जैसा एक आदमी है। अपने वंशज को ‘‘ज़कात’’ (साल में ढाई प्रतिशत अपने धन में से दान देना) लेने के अधिकार से भी वंचित कर दिया केवल दूरदर्शिता से कि कहीं आगे चलकर उसके वंशजों को ही लोग अपनी सारी ज़कात देने लग जाएँ।
    
उसकी महानता का ठीक-ठीक अनुमान करने के लिए आपको संसार के इतिहास पर सामूहिक रूप से एक दृष्टि डालनी चाहिए। आप देखेंगे कि अरब की मरुभूमि का यह अनपढ़ व्यक्ति जो चैदह सौ वर्ष पहले उस अंधकारपूर्ण काल में उत्पन्न हुआ, वास्तव में नवीन काल (Modern Era) का निर्माता और सम्पूर्ण संसार का रहनुमा है। वह केवल उनका रहनुमा है जो उसे मानते हैं, बल्कि उनका भी है जो उसे नहीं मानते। उनको इस बात का बोध तक नहीं कि जिसके विरुद्ध वे मुख खोलते हैं उसका पथ-प्रदर्शन किस प्रकार उनके विचारों में, उनके जीवन के सिद्धांतों में, उनके कर्म के नियमों में और उनके आधुनिक काल की आत्मा में मिश्रित हो गया है। (इतिहास गवाह है कि हजरत मोहम्मद की शिक्षाओं के विरोधी और उसके परिवार को उनकी शिक्षायें कितने आसानी से खुद में समाहित कर लेती है कि उसे पता भी नही चलता)


यही व्यक्ति है जिसने संसार की कल्पनाओं की धारा को भ्रमवाद और अद्भुतवाद, चमत्कार और योगवाद की ओर से हटाकर बुद्धिवाद (Logical), यथार्थवाद (Reality) और संयमयुक्त धर्मवाद (तक्वा परहेज़गारी )की ओर फेर दिया। उसने अनुभव-युक्त चमत्कार माँगने वाली दुनिया में बौद्धिक चमत्कारों को समझने और उन्हीं को सच्चाई की कसौटी मानने की रुचि पैदा की, उसने प्राकृति-विरुद्ध कामों में खुदाई के चिन्ह ढूंढने वालों की आँखें खोलीं और उनमें प्राकृति के दृश्यों (Natural Phenomena) में  खुदा की निशानियाँ देखने का स्वभाव उत्पन्न किया। उसी ने ख्याली घोड़े दौड़ाने वालों को अटकलबाजी (Speculation)से हटाकर बुद्धि, विचार (Thinking) , निरीक्षण (observation )और अन्वेषण (Experiment ) के रास्ते पर लगाया। उसी ने बुद्धि, अनुभव और चेतना की सीमाएँ मनुष्य को बताईं। भौतिकवाद (Materialism) और ब्रह्मवाद में समन्वय स्थापित किया। धर्म से ज्ञान और कर्म का, और ज्ञान और कर्म का धर्म से संबंध स्थापित किया। धर्म की शक्ति से संसार में वैज्ञानिक शक्ति और वैज्ञानिक शक्ति से शुद्ध धर्मवाद पैदा किया। उसी ने अनेकेश्वरवाद और सृष्टि-पूजा की नींव को उखाड़ा और ज्ञान की शक्ति से एकेश्वरवाद का विश्वास ऐसी सत्यता के साथ स्थापित किया कि अनेकेश्वरवादियों और मूर्ति-पूजकों के मत भी एकेश्वरवाद का रंग ग्रहण करने पर विवश हो गए। उसने नैतिकता और आध्यात्मिकता की बुनियादी कल्पनाओं को बदला। जो लोग वैराग्य, सन्यास और इच्छा-दमन को नैतिकता समझते थे, जिनके निकट मन और शरीर के स्वत्वों को पूरा करने और सांसारिक जीवन के विषयों में भाग लेने के साथ आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति संभव ही थी, उनको, उसी ने नागरिकता और समाज और सांसारिक कर्म के बीच नैतिकता की महानता और आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति की प्राप्ति का रास्ता दिखाया। फिर वही है जिसने मनुष्य को उसके सच्चे मूल्य का ज्ञान कराया। जो लोग भगवान के अवतार और अल्लाह के बेटे के सिवा किसी को पथ-प्रदर्शक और रहनुमा स्वीकार करने पर तैयार थे उनको उसने बताया कि मनुष्य और तुम्हारे ही जैसा मनुष्य स्वर्ग के राज का प्रतिनिधि और ईश्वर का उत्तराधिकारी (खलीफा) हो सकता है। जो लोग शक्तिशाली मनुष्य को अपना ईश्वर बताते थे उनको उसी ने समझाया कि मनुष्य सिवाए मनुष्य और कुछ नहीं है। कोई व्यक्ति पवित्रता, शासनकर्ता और आज्ञादाता का जन्मसिद्ध अधिकार लेकर आया है और किसी के माथे पर अपवित्रता, गुलामी, नीचता, महकूमी और दासता का पैदाइशी कलंक लगा हुआ है। इसी शिक्षा ने संसार में मानव-एकता, समानता, जनसत्ता और स्वाधीनता के विचार उत्पन्न किए हैं।

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