शनिवार, 11 जनवरी 2014

Hazrat Muhammad (SAw) on Test Parameter s मानदण्डों की कसौटी पर IInd and IIIrd

अब दूसरे और तीसरे मानदण्ड को एक साथ लीजिए। हजरत मुहम्मद (सल्ल) ने विशेष जातियों और विशेष देशों की सामयिक और स्थानीय समस्याओं पर ही विचार प्रकट करने में अपना समय नष्ट नहीं किया, बल्कि अपनी संपूर्ण शक्ति संसार में मानवता की उस बड़ी गुत्थी सुलझाने में व्यय कर दी जिससे सारे मनुष्यों की कुल छोटी-बड़ी समस्याएँ स्वयं सुलझ जाती हैं। वह बड़ी समस्या क्या है? वह केवल यह है, कि सृष्टि का विधान जिस सिद्धांत पर बना है और चल रहा है, मानव-जीवन की व्यवस्था भी उसी के अनुसार हो। क्योंकि मनुष्य इस ब्रहम्माण्ड का एक अंश है और अंश की गति का सम्पूर्ण ब्रहम्माण्ड के विरुद्ध होना ही विनाश का कारण है। यदि आप इस बात को समझना चाहते हैं तो इसका आसान तरीका यह है कि अपनी दृष्टि को तनिक प्रयत्न करके समय और स्थान के बंधनों से मुक्त कर लीजिए। भू-मंडल पर इस प्रकार दृष्टि डालिए कि आदि से आज तक और भविष्य से अन्त काल तक बसने वाले सारे मनुष्य एक ही समय में आपके सामने हों, फिर देखिए कि मनुष्य के जीवन में बिगाड़ के जितने रूप उत्पन्न हुए हैं या होने संभव हैं उन सबकी जड़ में क्या है और क्या हो सकता है? इस प्रश्न पर आप जितना विचार करेंगे, जितनी छानबीन और अन्वेषण करेंगे, निष्कर्ष यही निकलेगा कि मनुष्य का ईश्वर (अल्लाह) से विद्रोह सारी बुराइयों की जड़ है यह इसलिए कि ईश्वर (अल्लाह) का विद्रोही होकर मनुष्य दो स्थितियों में से कोई एक ही स्थिति ग्रहण करता है। या तो वह अपने को स्वतंत्र और अनुत्तरदाई समझकर मनमाने कार्य करने लगता है और यह चीज़ उसे अत्याचारी बना देती है या फिर वह ईश्वर (अल्लाह) के अतिरिक्त दूसरों की आज्ञा और उनकी व्यवस्था के सामने सिर झुकाने लगता है और इससे संसार में उपद्रव के अनगिनत मार्ग उत्पन्न हो जाते हैं। अब यह सोचने की बात है कि ईश्वर (अल्लाह) से बेपरवाह होकर ये बुराइयाँ क्यों उत्पन्न होती हैं ? इसका सीधा और सादा उत्तर यह है कि ऐसा करना वास्तविकता के विरुद्ध है, इसलिए उसका परिणाम बुरा निकलता है। यह सारी सृष्टि वास्तव में ईश्वर (अल्लाह) का साम्राज्य है। ज़मीन, चाॅद, हवा, पानी, रोषनी सब ईश्वर (अल्लाह) की मिलकियत हैं और मनुष्य इस साम्राज्य में पैदाइशी दास (बन्दे) की हैसियत रखता है। यह पूरा साम्राज्य जिस व्यवस्था पर स्थापित है और जिस व्यवस्था पर चल रहा है यदि मनुष्य उसका एक भाग होते हुए भी उसके विरुद्ध रवैया अपनाए तो निःसन्देह उसका ऐसा रवैया विनाशकारी परिणाम को उत्पन्न करेगा। उसका यह समझना कि मेरे ऊपर कोई सर्वोच्च अधिकारी नहीं है, जिसके सामने मैं उत्तरदाई (जवाबदेह)हूँ, वास्तविकता के विरुद्ध है, इसलिए जब वह स्वतंत्र बनकर स्वेच्छाचारी रूप से काम करता है और अपने जीवन का नियम स्वयं आप बनाता है तो परिणाम बुरा निकलता है। इसी प्रकार उसका ईश्वर (अल्लाह) के अतिरिक्त किसी और को अधिकार और प्रभुत्व का मालिक मानना और उससे भय या लालच रखना और उसके प्रभुत्व के आगे झुक जाना भी वास्तविकता के विरुद्ध है। वास्तव में इस पूरी सृष्टि में ईश्वर (अल्लाह) के अतिरिक्त कोई भी यह हैसियत नहीं रखता। अतः इसका परिणाम भी बुरा ही निकलता है। ठीक परिणाम निकलने की सूरत इसके अलावा कोई और नहीं है कि पृथ्वी और आकाश में जो वास्तविक शासक है मनुष्य उसी के आगे सिर झुकाए। अपनी सत्ता और स्वतंत्रता को उसके हवाले कर दे और अपने आज्ञापालन और अपनी बन्दगी को उसके लिए शुद्ध कर दे। अपने जीवन का विधान, कानून, नियम स्वयं बनाने या दूसरे व्यक्तियों से ग्रहण करने के स्थान पर उससे (अल्लाह से ) ग्रहण करना ही वह बुनियादी सुधार की योजना है, जिसे हज़रत मुहम्मद (सल्ल) ने मानव-जीवन के लिए पेश की है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल) की शिक्षायें और जीवन व्यवस्था एशिया और यूरोप के सीमओं के बंधन से मुक्त है। पृथ्वी के ऊपर जहाँ-जहाँ मनुष्य आबाद हैं, यही एक सुधार-योजना उनके भ्रष्ट, नीरस, विलासी, झूठे घमण्ड, स्वार्थ से परिपूर्ण और अपवित्र जीवन को शुद्ध कर सकती है और यह योजना भूत और भविष्य के बंधन से भी मुक्त है। डेढ़ हजार वर्ष पहले यह जितनी शुद्ध और लाभदायक थी उतनी ही आज भी है, और उतनी ही दस हजार, या लाखों वर्ष बाद भी रहेगी।

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