शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Quran and Science : Skin Receptors and Quran


त्वचा में दर्द के अभिग्राहकःReceptors
पहले यह समझा जाता था कि अनुभूतियां और दर्द केवल दिमाग पर निर्भर होती है। अलबत्ता हाल के शोध से यह जानकारी मिली है कि त्वचा में दर्द को अनुभूत करने वाले ‘‘अभिग्राहकरू त्मबमचजवते’’ होते हैं। अगर ऐसी कोशिकाएं न हों तो मनुष्य दर्द की अनुभूति (महसूस) करने योग्य नहीं रहता । जब कोई डाक्टर किसी रोगी में जलने के कारण पड़ने वाले घावों को इलाज के लिये, परखता है तो वह जलने का नुकसान मालूम करने के लिये जले हुए स्थल पर सूई चुभोकर देखता है अगर सूई चुभने से प्रभावित व्यक्ति को दर्द महसूस होता है, तो चिकित्सक या डाक्टर को इस पर प्रसन्नता होती है। इसका अर्थ यह होता है कि जलने का घाव केवल त्वचा के बाहरी हद तक है और दर्द महसूस करने वाली केाशिकाएं जीवित और सुरक्षित हैं। इसके प्रतिकूल अगर प्रभावित व्यक्ति को सुई चुभने पर दर्द अनुभूत नहीं हो तो यह चिंताजनक स्थिति होती है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि जलने के कारण बनने वाले घाव जख्म की गहराई अधिक है और दर्द महसूस करने वाली कोशिकाएं भी मर चुकी हैं।
‘‘जिन लोगों ने हमारी आयतों को मानने से इन्कार कर दिया उन्हें निस्संदेह, हम आग में झोंकेंगे और जब उनके शरीर की त्वचा (खाल) गल जाएगी तो, उसकी जगह दूसरी त्वचा पैदा कर देंगे ताकि वह खूब यातना (अज़ाब) का स्वाद चखें अल्लाह बड़ी ‘कुदरत एवं प्रभुता’ रखता है और अपने फैसलों को व्यवहार में लाने की हिक्मत (विज्ञान) भली भांति जानता है।(अल-कुरआन सूरः 4 आयत .56 )
थाईलैण्ड में चियांग माई युनीवर्सिटी के उदर विभाग; क्मचंतजउमदज व ि।दंजवउलद्ध के संचालक प्रोफेसर तीगातात तेजासान ने दर्द कोशिकाओं के संदर्भ में शोध पर बहुत समय खर्च किया पहले तो उन्हे विश्वास ही नहीं हुआ कि पवित्र कुरआन ने 1400 वर्ष पहले इस वैज्ञानिक यथार्थ का रहस्य उदघाटित कर दिया था। फिर इसके बाद जब उन्होंने उपरोक्त पवित्र आयतों के अनुवाद की बाज़ाब्ता पुष्टि करली तो वह पवित्र कुरआन की वैज्ञानिक सम्पूर्णता से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। तभी सऊदी अरब के रियाज नगर में एक सम्मेलन आयोजित हुआ जिसका विषय था ‘‘पवित्र कुरआन और सुन्नत में वैज्ञानिक निशानियां’’ प्रोफेसर तेजासान भी उस सम्मेलन में पहुंचे और सऊदी अरब के शहर रियाज में आयोजित ‘‘आठवें सऊदी चिकित्सा सम्मेलन’’ के अवसर पर उन्होंने भरी सभा में गर्व और समर्पण के साथ सबसे पहले कहा-
‘‘ अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूजनीय) नहीं, और मुहम्मद (सल्ल.)उसके रसूल हैं।’’
अधिक जानकारी के लिये पुस्तक -‘‘कुरआन और साईन्स’’ देखें

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