शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Promise and Amaanat


वादा और अमानत
1. हे आस्तिको (मोमिनों)! प्रतिज्ञाओं (कसमों )को पूरा करो। - कुरआन (5,1)
2. और अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन करो, निःसंदेह प्रतिज्ञा के   विषय में जवाब तलब किया जाएगा।-कुरआन (17, 34)
3. और अल्लाह से जो प्रतिज्ञा करो उसे पूरा करो।-कुरआन (6,153)
4. और तुम अल्लाह के वचन को पूरा करो जब आपस में वचन कर लो और सौगंध (अहद) को पक्का करने के बाद न तोड़ो और तुम अल्लाह को गवाह भी बना चुके हो, निःसंदेह अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। -कुरआन (16, 91)
5. निःसंदेह अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतें उनके हकदारों को पहुंचा दो और जब लोगों में फैसला करने लगो तो इंसाफ से फैसला करो।  -कुरआन (4, 58)
6. और तुम लोग अल्लाह के वचन को थोड़े से माल के बदले मत बेच डालो (अर्थात लालच में पड़कर सत्य से विचलित न हुआ करो), निःसंदेह जो अल्लाह के यहां है वही तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है यदि समझना चाहो। -कुरआन (16, 95)
महत्वपूर्ण आदेश आज्ञाकारी और पूर्ण समर्पित लोगों को ही दिए जाते हैं। जो लोग समर्पित नहीं होते वे किसी को अपना मार्गदर्शक भी नहीं मानते और न ही वे अपने घमंड में उनकी दिखाई राह पर चलते हैं। इसीलिए यहां जो आदेश दिए गए हैं, उनका संबोधन ईमान वालों (मुसलमानों) से है।
समाज की शांति के लिए यह जरूरी है कि समाज के लोग आपस में किए गए वादों को पूरा करें और जिस पर जिस किसी का भी हक वाजिब है, वह उसे अदा कर दे।  अगर समाज के सदस्य लालच में पड़कर ऐसा न करें और यह चलन आम हो जाए तो जिस फायदे के लिए वे ऐसा करेंगे उससे बड़ा नुक्सान समाज को वे पहुंचाएंगे और आखिरकार कुछ समय बाद खुद भी वे उसी का शिकार बनेंगे। परलोक की यातना का कष्ट भी उन्हें झेलना पड़ेगा, जिसके सामने सारी दुनिया का फायदा भी थोड़ा ही मालूम होगा। वादे, वचन और संधि केबारे में परलोक में पूछताछ जरूर होगी। यह ध्यान में रहे तो इंसान के दिल से लालच और उसके अमल से अन्याय घटता चला जाता है।स्वर्ग में दाखिले की बुनियादी शर्त है सच्चाई। जिसमें सच्चाई  का गुण है तो वह अपने वादों का भी पाबंद जरूर.....

होगा। जो अल्लाह से किए गए वादों को पूरा करेगा, वह लोगों से किए गए वायदों को भी पूरा करेगा। वादों और प्रतिज्ञाओं का संबंध ईमान और सच्चाई से है और जिन लोगों में ये गुण होंगे, वही लोग स्वर्ग में जाने के अधिकारी हैं और जिस समाज में ऐसे लोगों की अधिकता होगी, वह समाज दुनिया में भी स्वर्ग की शांति का आनंद पाएगा।
अमानत को लौटाना भी एक प्रकार से वायदे का ही पूरा करना है। यह जान और दुनिया का सामान जो कुछ भी है, कोई इंसान इसका मालिक नहीं है बल्कि इन सबका मालिक एक अल्लाह है और ये सभी चीजें इंसान के पास अमानत के तौर पर हैं। वह न अपनी जान दे सकता है और न ही किसी की जान अन्यायपूर्वक ले सकता है। दुनिया की चीजों को भी उसे वैसे ही बरतना होगा जैसा कि उसे हुक्म दिया गया है। दुनिया के सारे कष्टों, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को रोकने के लिए बस यही काफी है।
    अरबी में ‘अमानत’ शब्द का अर्थ बहुत व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। जिम्मेदारियों को पूरा करना, नैतिक मूल्यों को निभाना, दूसरों के अधिकार उन्हें सौंपना और सलाह के मौकों पर सद्भावना सहित सलाह देना भी अमानत के दायरे में ही आता है। अमानत के बारे में आखिरत मे सवाल का ख्याल ही उसके सही इस्तेमाल की गारंटी है। कुरआन यही ज्ञान देता है।
वास्तव में सिर्फ इस दुनिया का बनाने वाला ही बता सकता है कि इंसान के साथ उसकी मौत के बाद क्या मामला पेश आने वाला है ?
और वे कौन से काम हैं जो उसे मौत के बाद फायदा देंगे ?
वही मालिक बता सकता है इंसान को दुनिया में कैसे रहना चाहिए ?
और मानव का धर्म वास्तव में क्या है ?
कुरआन उसी मालिक की वाणी है जो कि मार्ग दिखाने का वास्तविक अधिकारी है क्योंकि मार्ग, जीवन और सत्य, हर चीज को उसी ने बनाया है। और अपने रसूल मोहम्मद (सल्ल0) को  लोगो के लिये नमूना (त्वसम डवकमस) बना के भेजा ताकि हम इंसान  अपने मालिक की मंशा के मुताबिक अमल कर सकें, अपनी दुनिया व आखिरत कामयाब बना सकें।
साभार- आपकी अमानत आपकी सेवा में

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