शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Islam : Swami Vivekanand


स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात धर्मविद्)
‘‘...मुहम्मद (इन्सानी) बराबरी, इन्सानी भाईचारे और तमाम मुसलमानों के भाईचारे के पैगम्बर थे। ...जैसे ही कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है पूरा इस्लाम बिना किसी भेदभाव के उसका खुली बॅाहों से स्वागत करता है, जबकि कोई दूसरा धर्म ऐसा नहीं करता। ...हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ इस्लाम के अनुयायी हैं। ...मुहम्मद (सल्ल) ने अपने जीवन-आचरण से यह बात सिद्ध कर दी कि मुसलमानों में भरपूर बराबरी और भाईचारा है। यहाँ वर्ण, नस्ल, रंग या लिंग (के भेद) का कोई प्रश्न ही नहीं। ...इसलिए हमारा पक्का विश्वास है कि व्यहवारिक इस्लाम की मदद लिए बिना वेदांती सिद्धांत चाहे वे कितने ही उत्तम और अद्भुत हो विशाल मानव-जाति के लिए मूल्यहीन (टंसनमसमेे) हैं...।’’ टीचिंग्स आफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217, 218)अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004
तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पा॰चजन्य’ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पत्रिका)
‘‘...क्या इससे इन्कार मुमकिन है कि पैगम्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? उन्होंने इतिहास की काया पलट दी और हमारे विश्व के हर क्षेत्र पर प्रभाव डाला। अतः अगर मैं कहूँ कि इस्लाम बुरा है तो इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में रहने वाले इस धर्म के अरबों (ठपससपवदे) अनुयायियों के पास इतनी बुद्धि-विवेक नहीं है कि वे जिस धर्म के लिए जीते-मरते हैं उसी का विश्लेषण और उसकी रूपरेखा का अनुभव कर सकें। इस धर्म के अनुयायियों ने मानव-जीवन के लगभग सारे क्षेत्रों में नाम कमाया और हर किसी से उन्हें सम्मान मिला...।’’
‘‘हम उन (मुसलमानों) की किताबों का, या पैगम्बर के जीवन-वृत्तांत का, या उनके विकास व उन्नति के इतिहास का अध्ययन कम ही करते हैं... हममें से कितनों ने तवज्जोह के साथ उस परिस्थिति पर विचार किया है जो मुहम्मद(सल्ल.) के, पैगम्बर बनने के समय, 14 शताब्दियों पहले विद्यमान थे और जिनका बेमिसाल, प्रबल मुकाबला उन्होंने किया? जिस प्रकार से एक अकेले व्यक्ति के आत्म-बल तथा आयोजन-क्षमता ने हमारी जि़न्दगियों को प्रभावित किया और समाज में उससे एक निर्णायक परिवर्तन आ गया, वह असाधारण था। फिर भी इसकी गतिशीलता के प्रति हमारा जो अज्ञान है वह हमारे लिए एक ऐसे मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है जिसे मान्य नहीं किया जा सकता।’’ आलेख (ज्ञदवू जील दमपहीइवतश्े पजश्े त्ंउ्रंद) अंग्रेजी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत

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