शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Islam : Barnaad Sha : Vishambhar Naath Pandey


बर्नाड शाॅ,
बर्नाड शाॅ,(मशहूर दार्शनिक) जो किसी मसले के सारे ही पहलुओं का गहराई के साथ जायज़ा लेने वाले व्यक्ति थे, उन्होंने इस्लाम के उसूलों का विश्लेषण करने के बाद कहा -‘‘दुनिया में बाकी और कायम रहने वाला दीन (धर्म) यदि कोई है तो वह केवल इस्लाम है।’’ आज 1957 ई. में जब हम मानव-चिंतन को जागृत करने और जनता को उनकी खुदी से अवगत कराने की थोड़ी-बहुत कोशिश करते हैं तो कितना विरोध होता है। चैदह सौ साल पहले जब नबी (सल्ल) ने यह संदेश दिया कि बुतों (मूर्तियों) को खुदा न बनाओ। अनेक खुदाओं को पूजने वालों के बीच खड़े होकर यह ऐलान किया कि बुत तुम्हारे खुदा नहीं हैं। उनके आगे सिर मत झुकाओ। सिर्फ एक स्रष्टा ही की उपासना करो।
इस ऐलान के लिए कितना साहस चाहिए था, इस संदेश का कितना विरोध हुआ होगा। विरोध के तूफान के बीच पूरी दृढ़ता के साथ आप (सल्ल.) यह क्रांतिकारी संदेश देते रहे, यह आप (सल्ल) की महानता का बहुत बड़ा सुबूत है।
इस्लाम अपनी सारी खूबियों और चमक-दमक के साथ हीरे की तरह आज भी मौजूद है। अब इस्लाम के अनुयायियों का यह कर्तव्य है कि वे इस्लाम धर्म को सच्चे रूप में अपनाएँ। इस तरह वे अपने रब की प्रसन्नता और खुशी भी हासिल कर सकते हैं और गरीबों और मजबूरों की परेशानी भी हल कर सकते हैं। और मानवता भौतिकी एवं आध्यात्मिक विकास की ओर तीव्र गति से आगे बढ़ सकती है।’’ ‘मुहम्मद (सल्ल.) का जीवन-चरित्र’ पर भाषण 7 अक्टूबर 1957 ई.
विशम्भर नाथ पाण्डे (इतिहासकार) भूतपूर्व राज्यपाल, उड़ीसा
(मोहम्मद साहब पर अवतरित) कुरआन ने मनुष्य के आध्यात्मिक, आर्थिक और राजकाजी जीवन को जिन मौलिक सिद्धांतों पर कायम करना चाहा है उनमें लोकतंत्र को बहुत ऊँची जगह दी गई है और समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व-भावना के स्वर्णिम सिद्धांतों को मानव जीवन की बुनियाद ठहराया गया है।
कुरआन ‘‘तौहीद’’ यानी एकेश्वरवाद को दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई बताता है। वह आदमी की जि़न्दगी के हर पहलू की बुनियाद इसी सच्चाई पर कायम करता है। कुरआन का कहना है कि जब कुल सृष्टि का ईश्वर एक है तो लाज़मी तौर पर कुल मानव समाज भी उसी ईश्वर की एकता का एक रूप है। आदमी अपनी बुद्धि और अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से इस सच्चाई को अच्छी तरह समझ सकता इै। इसलिए आदमी का सबसे पहला कर्तव्य यह है कि ईश्वर की एकता को अपने धर्म-ईमान की बुनियाद बनाए और अपने उस मालिक के सामने, जिसने उसे पैदा किया और दुनिया की नेमतें दीं, सर झुकाए। आदमी की रूहानी जि़न्दगी का यही सबसे पहला उसूल है।
आदमी की समाजी जि़न्दगी का पहला धर्म कुरआन में गरीबों, लाचारों, दुखियों और पीडि़तों से सहानुभूति और उनकी सहायता करना बताया गया है। कुरआन ने इन्सान के समाजी जीवन की बुनियाद ईश्वर की एकता और इन्सानी भाईचारे पर रखी है। कुरआन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह इन्सानियत के, मानवता के, टुकड़े नहीं करता। इस्लाम के इन्सानी भाईचारे की परिधि में कुल मानवजाति, कुल इन्सान शामिल हैं और हर व्यक्ति को सदा सबकी अर्थात् अखिल मानवता की भलाई, बेहतरी और कल्याण का ध्येय अपने सामने रखना चाहिए। कुरआन का कहना है कि सारा मानव समाज एक कुटुम्ब है। कुरआन की कई आयतों में नबियों और पैगम्बरों को भी भाई शब्द से संबोधित किया गया है। मुहम्मद साहब हर समय की नमाज के बाद आमतौर पर यह कहा करते थेकृ‘‘मैं साक्षी हूँ कि दुनिया के सब आदमी एक-दूसरे के भाई हैं।’’ यह शब्द इतनी गहराई और भावुकता के साथ उनके गले से निकलते थे कि उनकी आँखों से टप-टप आंसू गिरने लगते थे।
इससे अधिक स्पष्ट और जोरदार शब्दों में मानव-एकता और मानवजाति के एक कुटुम्ब होने का बयान नहीं किया जा सकता। कुरआन की यह तालीम और इस्लाम के पैगम्बर की यह मिसाल उन सारे रिवाजों और कायदे-कानूनों और उन सब कौमी, मुल्की, और नस्ली...गिरोहबन्दियों को एकदम गलत और नाजायज कर देती है जो एक इन्सान को दूसरे इन्सान से अलग करती हैं और मानव-मानव के बीच भेदभाव और झगडे़ पैदा करती हैं। पैगम्बर मुहम्मद, कुरआन और हदीस, इस्लामी दर्शन’ गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली, 1994

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