हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों ( हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों ं)में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ और पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। --डा. एम. श्रीवास्तव
अल्लाह अत्यंत क्षमााशील और दयावान है। वही सृष्टि का निर्माता है। उसने अपने सर्जित जीवों में इन्सान को श्रेष्ठ और महिष्ठ बनाया है। अल्लाह के सभी उदार अनुग्रहों और उसकी अनुकंपाओं की गणना करनी कठिन है, जो उसने इनसानों पर की है। उसकी इन्सानों पर विशेष कृपा यह रही कि उनके मार्गदर्शक का प्रबंध किया और उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए अपने पैगम्बरों, रसूलों और अवतारों को प्रत्येक कौम और समुदाय में भेजा। कुरआन में हैः ‘‘कोई कौम ऐसी नहीं गुजरी, जिसमें कोई सचेत करने वाला न आया हो।’’ (कुरआन 35/ 24)
‘‘अवतार’’ का अर्थ यह कदापि सही नहीं है कि ईश्वर स्वयं धरती पर सशरीर आता है, बल्कि सच्चाई यह है कि वह अपने पैगम्बर और अवतार भेजता है। उसने इन्सानों के उद्धार, कल्याण और मार्गदर्शन के लिए अपने अवतार पैगम्बर और रसूल भेजे। यह सिलसिला हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर समाप्त कर दिया गया। स्वामी विवेकानन्द और गुरुनानक सरीखे महानुभावों ने भी पैगम्बरी और ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया है। वरिष्ठ विद्वानों में पं. सुन्दर लाल, श्री बलराम सिंह परिहार, डा. वेद प्रकाश उपाध्याय, डा. पी.एच. चैबे, डा. रमेश प्रसाद गर्ग,
पं. दुर्गा शंकर सत्यार्थी आदि ने ‘‘अवतार’’ का अर्थ ईश्वर द्वारा मानव-कल्याण के लिए अपने पैगम्बर और दूत भेजा जाना बताया है। प्राणनाथी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध चिंतक श्री कश्मीरी लाल भगत ने भी इस तथ्य का स्पष्ट समर्थन किया है।
हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं।......
पैगम्बरों और अवतारों के भेजे जाने का विशिष्ट औचित्य होता है। लोगों में अधर्म की प्रवृत्ति पैदा हो जाने,
धर्म के वास्तविक स्वरूप से हट जाने और मूल धर्म में मिलावट हो जाने के कारण पैगम्बर एवं अवतार भेजे गए, जिन्होंने धर्म को फिर से मौलिक रूप में पेश किया और एक ईश्वर की ओर लोगों को बुलाया। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) उस समय भेजे गए, जब हजरत ईसा मसीह (अलैहि.) को आए हुए पाँच सौ से अधिक वर्ष बीत चुके थे। नबियों (अलैहि.) की शिक्षाएँ नष्ट अथवा विलुप्त हो चुकी थीं, सनातन धर्म पर अधार्मिकता छा गई थी, ईशभय और ईशपरायणता समाप्त हो चुकी थी। इन्सान अपने पैदा करनेवाले को भूला हुआ था। उसने अनेक ईश्वर (पूज्य) बना डाले और अपनी दशा इतनी पतित कर डाली कि पेड़, पहाड़, आग, पानी, हवा, धरती, चांद, सूरज यहाॅ तक की जानवरों आदि को पूजने में लिप्त हो गया।
इन विकट और विषम परिस्थितियों में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का आगमन हुआ। आप (सल्ल.) ने अल्लाह के पैगम्बर के रूप में महान और अनुपम सद्क्रान्ति कर दिखाई। आप (सल्ल.) कोई नया धर्म लेकर नहीं आए थे, बल्कि मानव जाति के आरंभ से चले आ रहे सनातन धर्म (इस्लाम) में आई खराबियों और विकृतियों को दूर कर उसे मौलिक रूप में पेश किया। आप (सल्ल.) ने इन्सानों को उनकी अस्ल हैसियत बताई और उनकी मिथ्या धारणाओं का उन्मूलन किया। आप (सल्ल.) ने बताया कि इन्सान का ईश्वर केवल एक है, वह निराकार है। इन्सान को उसी की ही दासता अपनानी चाहिए, उसकी ही इबादत करनी चाहिए। यदि वह इस धारणा और भक्ति-कर्म का इन्कार करता है, तो अपने को गलत जगह खड़ा कर लेता है, जिसके कारण उसके कदम गलत दिशा में उठने लगते हैं। ऐसे में भला उसकी जीवन-यात्रा कैसे सफल हो सकती है?
जीवन की सुगम, सार्थक, सफल और फलदाई यात्रा के लिए अल्लाह के अंतिम पैगम्बर और दूत हजरत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा पेश की गई शिक्षाओं को अपनाया जाए एवं आप (सल्ल) के बताए मार्ग पर चला जाए, तभी पारलौकिक जीवन को भी सफल बनाया जा सकता है। अब यह सच्चाई छिपी नहीं रही कि भारतीय धर्मग्रन्थों में जिस अवतार (पैगम्बर) के आने की पूर्व-सूचना दी गई थी, वे हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। अल्लाह हमारी कोशिशों को कबूल फरमाए, आमीन।
डा. एम. ए. श्रीवास्तव
स्थान - नई दिल्ली
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पुस्तकः नराशंस और अंतिम ऋषि (ऐतिहासकि शोध)
डा. वेदप्रकाश उपाध्याय
कल्कि अवतार और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
डा. वेदप्रकाश उपाध्याय
अवतारवाद और रिसालत- मोहम्मद अहमद
मोहम्मद सल्ल ही क्यो ? - एम नसरूल्लाह (हिन्दी)
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