शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Hadees Definition in Hindi


हदीस
हदीस का शाब्दिक अर्थ है बात, वाणी, बातचीत, गुफ्तगू, खबर, ।
पारिभाषिक अर्थ - इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’, पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल) के कथनों, कर्मों, कार्यों को कहते हैं। अर्थात् 40 वर्ष की उम्र में ईश्वर की ओर से सन्देष्टा, दूत (नबी, रसूल, पैगम्बर) नियुक्त किए जाने के समय से, देहावसान तक, आप (सल्ल) ने जितनी बातें कीं, जितनी बातें दूसरों को बताईं, जो काम किए उन्के संग्रह को हदीस कहा जाता है।
इस्लाम के मूल (ईश्वरीय) ग्रंथ कुरआन में अधिकतर विषयों पर जो रहनुमाई, आदेश-निर्देश, सिद्धांत, नियम, कानून, शिक्षाएँ, पिछली कौमों के वृत्तांत, रसूलों के आह्नान और सृष्टि व समाज से संबंधित बातों तथा एकेश्वरत्व के तर्क, अनेकेश्वरत्व के खंडन और परलोक-जीवन आदि की चर्चा हुई है वह संक्षेप में है। इन सब की विस्तृत व्याख्या का दायित्व ईश्वर ने पैगम्बर (सल्ल) पर रखा।
हदीस के निम्नलिखित छः विश्वसनीय संग्रह हैं जिनमें 29,578 हदीसें संग्रहित हैं 1. सही बुखारी
संग्रहकर्ता अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद-बिन-इस्माईल बुखारी, हदीसों की संख्या 7225
2. सही मुस्लिम
संग्रहकर्ता अबुल-हुसैन मुस्लिम-बिन-अल-हज्जाज, हदीसों की संख्या 4000
3. सुनन तिर्मिजी
संग्रहकर्ता अबू-ईसा मुहम्मद-बिन-ईसा तिर्मिजी, हदीसों की संख्या  3891
4. सुनन अबू-दाऊद
संग्रहकर्ता अबू-दाऊद सुलैमान-बिन-अशअजस सजिस्तानी, हदीसे 4800
5. सुनन इब्ने माजह
संग्रहकर्ता मुहम्मद-बिन-यजीद-बिन-माजह, हदीसों की संख्या 4000
6. सुनन नसाई
संग्रहकर्ता अबू-अब्दुर्रहमान-बिन-शुऐब खुरासानी, हदीसों की संख्या 5662
उपरोक्त संग्रहों से संकलित अन्य प्रमुख उपसंग्रह
1. मिश्कात संग्रहकर्ता मुहम्मद-बिन-अब्दुल्लाह अल-खतीब तबरेजी, हदीसकृ 1894
2. रियाज-उस-सालिहीन संग्रहकर्ता अबू-ज़करीया-बिन-शरफुद्दीन नबवी, हदीसें 6294
इस्लामी शरीअत (धर्मशास्त्र) ‘कुरआन’ और ‘हदीस’ पर आधारित है। कुछ आधारभूत नियम कुरआन की आयतों से बने हैं। जिन नियमों की व्याख्या की आवश्यकता हुई, वह व्याख्या हदीस से ली गई है। बदलते हुए ज़मानों और नई-नई परिस्थितियों में जो नए-नए इशूज़ नई-नई समस्याएं सामने आती है उनसे संबंधित, शरीअत के कानून सिर्फ कुरआन और हदीस के अनुसार ही बनाए जाते हैं। यही कारण है कि किसी इन्सान को, चाहे वह मुसलमान ही हो और सारे मुसलमान मिल जाएँ, किसी को भी कुरआन और हदीस से निस्पृह व स्वच्छंद होकर शरीअत का कोई कानून बनाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। कानून में संशोधन-परिवर्तन, जो कुरआन, हदीस की परिधि से बाहर जाकर किया जाए, अवैध और अमान्य होता है।

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