बुधवार, 30 दिसंबर 2015

एम.एन. राय संस्थापक- मैक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टी व कम्युनिस्ट पार्टी इण्डिया M.N.Rai --Founder Maxican Comunist Party and Comunist Party of India :: ========================================


‘‘ हजरत मोहम्मद द्वारा प्रस्तुत किये गये इस्लाम के एकेश्वरवाद के प्रति अरब के लोगों के विश्वास ने न केवल कबीलों के बुतों को ध्वस्त कर दिया बल्कि वे इतिहास में एक ऐसी अजेय शक्ति बनकर उभरे जिसने मानवता को बुतपरस्ती की लानत से छुटकारा दिलाया। ईसाइयों (और अन्य धर्मो) के, संन्यास और चमत्कारों पर भरोसा करने की घातक प्रवृत्ति को झकझोर कर रख दिया और पादरियों (मठाधीषों) और हवारियों (मसीह के साथियों) के पूजा की कुप्रथा से भी छुटकारा दिला दिया।’’

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मुन्षी प्रेमचन्द ‘इस्लामी सभ्यता’ Munshi Prem Chand " Isalmic Civilization"

‘...हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कोई इंसान उस वक्त तक मोमिन/सच्चा मुस्लिम नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई-बन्दों पड़ोसियों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है। ...’
  और उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है ...‘‘सारी दुनिया अल्लाह का परिवार है वही इंसान अल्लाह (ईष्वर) का सच्चा बंदा (भक्त) है जो खुदा के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’
‘‘...अगर तुम्हें खुदा की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’
...सूद/ब्याज की प्रवृत्ति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। हजरत मुहम्मद का लाया धर्म इस्लाम ही अकेला धर्म व जीवन पद्वति है जिसने सूद को और उसके हर प्रकार को हराम (अवैध) ठहराया है...।
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मुन्षी प्रेमचन्द ‘इस्लामी सभ्यता’
साप्ताहिक प्रताप विशेषांक दिसम्बर 1925

Sadhbhav doot


Sadhbhav Doot


गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी ....रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)

रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)
जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी। तलवार के भय
अथवा पद
के लोभ से तो बहुत थोड़े ही लोग मुसलमान हुए, ज़्यादा तो ऐसे ही थे
जिन्होंने इस्लाम का वरण स्वेच्छा से किया। बंगाल, कश्मीर और पंजाब
में गाँव-के-गाँव एक साथ मुसलमान बनाने के लिए किसी ख़ास आयोजन
की आवश्यकता नहीं हुई। ...मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का उपदेश
दिया वह अत्यंत सरल और सबके लिए सुलभ धर्म था। अतएव
जनता उसकी ओर उत्साह से बढ़ी। ख़ास करके, आरंभ से ही उन्होंने इस
बात
पर काफ़ी ज़ोर दिया कि इस्लाम में दीक्षित हो जाने के बाद,
आदमी आदमी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता है। इस बराबरी वाले
सिद्धांत के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और जिस
समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर वालों के धार्मिक
या सामाजिक
अत्याचार से पीड़ित थे उस समाज के निम्न स्तर के लोगों के बीच यह
धर्म
आसानी से फैल गया...।
‘‘...सबसे पहले इस्लाम का प्रचार नगरों में आरंभ हुआ क्योंकि विजेयता,
मुख्यतः नगरों में ही रहते थे...अन्त्यज और निचली जाति के लोगों पर
नगरों में सबसे अधिक अत्याचार था। ये लोग प्रायः नगर के भीतर बसने
नहीं दिए जाते थे...इस्लाम ने जब उदार आलिंगन के लिए अपनी बाँहें इन
अन्त्यजों और ब्राह्मण-पीड़ित जातियों की ओर पढ़ाईं, ये
जातियाँ प्रसन्नता से मुसलमान हो गईं।
कश्मीर और बंगाल में तो लोग झुंड-के-झुंड मुसलमान हुए। इन्हें किसी ने
लाठी से हाँक कर इस्लाम के घेरे में नहीं पहुँचाया, प्रत्युत, ये पहले से
ही ब्राह्मण धर्म से चिढ़े हुए थे...जब इस्लाम आया...इन्हें लगा जैसे यह
इस्लाम ही उनका अपना धर्म हो। अरब और ईरान के मुसलमान
तो यहाँ बहुत कम आए थे। सैकड़े-पच्चानवे तो वे ही लोग हैं जिनके बाप-
दादा हिन्दू थे...।
‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद ने किया था...वह धर्म, सचमुच,
स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे।
उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए
लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित
किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन
दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के
चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’
—‘संस्कृति के चार अध्याय’
लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994
पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317

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बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

अल्लाह (ईश्वर) में विश्वास

'अल्लाह" (ईश्वर) उस तस्वर का नाम है, जिससे ने इस ब्रम्हाण्ड का निर्माण किया और जो हमारे जीवन और मरण का मालिक है। इंसान की समस्त व्यावहारिकता और विचार सम्बन्धी व्यवस्था में जिस चीज की मौलिकता एंव केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। वह "अल्लाह" (ईश्वर) में विश्वास है।

बाकि दूसरी सभी धारणऐं एंव आदेश वास्तव में इस मूल की शाखाऐं हैं। जितने भी विचार, आदेश और मान्यताऐं हैं, उनमें मजबुती और सार्थकता अल्लाह (ईश्वर) में विश्वास से ही आती हैं। यदि इस एक केन्द्र से निगाह हटा ली जाए, तो इस दूनियां की प्रत्येक चीज अर्थहीन हो जाएगी और इंसान की सम्पूर्ण व्यवस्था, जिसका सम्बन्ध चाहे विचार एंव आस्था से हो या व्यवहार से, सब का सब छिन्न-भिन्न होकर रह जाएगा।
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सोमवार, 26 जनवरी 2015

निरक्षर ईशदूत Illiterate Messenger (UMMI NABI)

निरक्षर ईशदूत Illiterate Messenger (UMMI NABI)===========================================

हजरत मुहम्मद ने एथेन्स, रोम, ईरान, भारत या चीन के ज्ञान-केन्द्रों से दर्शन का ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, लेकिन आपने मानवता को चिरस्थायी महत्व की उच्चतम सच्चाइयों से परिचित कराया। वे निरक्षर थे, लेकिन उनको ऐसे भाव पूर्ण और उत्साहपूर्ण भाषण करने की योग्यता प्राप्त थी कि लोग भाव-विभोर हो एठते और उनकी आँखों से आँसू फूट पड़ते। वे अनाथ थे और धनहीन भी, लेकिन जन-जन के हृदय में उनके प्रति प्रेमभाव था। उन्होंने किसी सैन्य अकादमी से शिक्षा ग्रहण नही की थी, लेकिन फिर भी उन्होंकने भयंकर कठिनाइयों और रुकावटों के बावजूद सैन्य शक्ति जुटाई और अपनी आत्मशक्ति के बल पर, जिसमें आप अग्रणी थे, कितनी ही विजय प्राप्त कीं। कुशलतापूर्ण धर्म-प्रचार करनेवाले ईश्वर प्रदत्त योग्यताओं के लोग कम ही मिलते हैं।
      डेकार्ड के अनुसार, ‘‘आदर्श उपदेशक संसार के दुर्लभतम प्राणियों में से है।’’ हिटलर ने भी अपनी पुस्तक Mein Kamp (मेरी जीवनगाथा) में इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। वह लिखता है-‘‘महान सिद्धान्तशास्त्री कभी-कभार ही महान नेता होता है। इसके विपरीत एक आन्दोलनकारी व्यक्ति में नेतृत्व की योग्यताएँ अधिक होती हैं। वह हमेशा एक बेहतर नेता होगा, क्योंभ्कि नेतृत्व का अर्थ होता है, अवाम को प्रभावित एवं संचालित करने की क्षमता। जन-नेतृत्व की क्षमता का नया विचार देने की योग्यता से कोई सम्बंध नहीं है।’’ 
   लेकिन वह आगे कहता है-‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’पैगम्बरे-इस्लाम मुहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है।
    इससे अधिक विस्मयकारी है वह टिप्पणी, जो बास्वर्थ स्मिथ ने की है-‘‘ वे जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और केसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीजर (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडम्बर से मुक्त। और वे ऐसे केसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे, राजस्व-प्राप्ति की विशिष्ट व्यवस्था। यदि कोई व्यक्ति यह कहने का अधिकारी है कि उसने दैवी अधिकार से राज किया तो वे मुहम्मद ही हो सकते हैं, क्योंकि उन्हेंय बाह्य साधनों और सहायक चीजों के बिना ही राज करने की शक्ति प्राप्त थी। आपको इसकी परवाह नहीं थी कि जो शक्ति आपको प्राप्त थी उसके प्रदर्शन के लिए कोई आयोजन करें। आपके निजी जीवन में जो सादगी थी, वही सादगी आपके सार्वजनिक जीवन में भी पाई जाती थी।’’
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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

इस्लाम की विशेषताए (Characteristics of Islam)

इस्लाम की विशेषताए 
राजेन्द्र नारायण लाल अपनी पुस्तक ‘इस्लाम एक स्वयं सिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था‘ में मुहम्मद, मदिरापान ,सूद (ब्याज),विधवा स्त्री एवं स्त्री अधिकार आदि बारे में अपने लेख ‘इस्लाम की विशेषताऐं’ में लिखते हैं
(1)     इस्लाम की सबसे प्रधान विशेषता उसका विशुद्ध एकेश्वरवाद(Oneness in God) है। इस्लाम के एकेश्वरवाद में न किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ और न विकार उत्पन्न हुआ। इसकी नींव इतनी सुदृढ़ है कि इसमें मिश्रण का प्रवेश असंभव है। इसका कारण इस्लाम का यह आधारभूत कलिमा है- (La-Ilaah-IL-LALLAH-MOHAMMADUR-RASOOL-ALLAH)‘‘मैं स्वीकार करता हूँ कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य और उपास्य नहीं और मुहम्मद ईश्वर के बन्दे और उसके दूत हैं। मुहम्मद साहब को ईश्वर(Allah) ने कुरआन में अधिकतर ‘अब्द’ कहा है जिसका अर्थ आज्ञाकारी बन्दा है, अतएव ईश्वर का बन्दा न ईश्वर का अवतार हो सकता है और न उपास्य हो सकता है।

(2)     इस्लाम ने मदिरा को हर प्रकार के पापों की जननी कहा है। अतः इस्लाम में केवल नैतिकता के आधार पर मदिरापान निषेघ नहीं है अपितु घोर दंडनीय अपराध भी है। अर्थात कोड़े की सजा। इस्लाम में सिदधंततः ताड़ी, भंग आदि सभी मादक वस्तुएँ निषिद्ध है। जबकि....

(3)    जकात यह श्रेय केवल इस्लाम को प्राप्त है कि उसके पाँच आधारभूत कर्तव्यों-नमाज (उपासना) , रोजा (ब्रत) हज (काबा की तीर्थ की यात्रा), में एक जकात भी है। इस जकात को प्राप्त करने के पात्रों में निर्धन भी हैं और ऐसे कर्जदार भी हैं ‘जो कर्ज अदा करने में असमर्थ हों या इतना धन न रखते हों कि कोई कारोबार कर सकें। नियमित रूप से धनवानों के धन में इस्लाम ने मूलतः धनहीनों का अधिकार है उनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे जकात लेने के वास्ते भिक्षुक बनकर धनवानों के पास जाएँ। यह शासन का कर्तव्य है कि वह धनवानों से ज़कात वसूल करे और उसके अधिकारियों को दे। धनहीनों का ऐसा आदर किसी धर्म में नहीं है।

(4)     इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि...

(5)   सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए कुरआन में सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा (रसूल) से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2/279)

(6)   इस्लाम ही को यह श्रेय भी प्राप्त है कि उसने धार्मिक रूप से रिश्वत (घूस) को निषिद्ध् ठहराया है
     (कुरआन 2/188) हजरत मुहम्मद साहब ने रिश्वत देनेवाले और लेनेवाले दोनों पर खुदा की लानत भेजी है।

(7)   इस्लाम ही ने सबसे प्रथम स्त्रियों को सम्पति का अधिकार प्रदान किया, उसने मृतक की सम्पति में भी स्त्रियों को भाग दिया। इस्लाम में विधवा के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। पति की मृत्यू के चार महीने दस दिन बाद वह अपना विवाह कर सकती है।

(8)   इस्लाम ही ने अनिवार्य परिस्थिति में स्त्रियों को पति त्याग (खुला) का अधिकार प्रदान किया है।

(9)   यह इस्लाम ही है जिसने किसी स्त्री के सतीत्व पर लांछना लगाने वाले के लिए चार साक्ष्य उपस्थित करना अनिवार्य ठहराया है और यदि वह चार उपस्थित न कर सके तो उसके लिए अस्सी कोडों की सजा नियत की है। इस संदर्भ में श्री रामचन्द्र और हजरत मुहम्मद साहब का आचरण विचारणीय है। उसने निर्दोष स्त्रियों पर दोषारोपण को वैधानिक अपराध ठहराया।

(10)   इस्लाम ही है जिसे कम नापने और कम तौलने को वैधानिक अपराध के साथ धार्मिक पाप भी ठहराया और बताया कि परलोक में भी इसकी पूछ होगी।

(11)   इस्लाम ने अनाथों के सम्पत्तिहरण को धार्मिक पाप ठहराया है। (कुरआनः 4/10, 4/127)

(12)   इस्लाम कहता है कि यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से प्रेम करो।

(13)   इस्लाम कहता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है जो उसके बन्दों के साथ अधिक से अधिक भलाई करता है।

(14)   इस्लाम कहता है कि जो प्राणियों पर दया करता है, ईश्वर उसपर दया करता है।

(15)   दया ईमान की निशानी है। जिसमें दया नहीं उसमें ईमान नहीं।

(16)   किसी का ईमान पूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने साथी को अपने समान न समझे।

(17)   इस्लाम के अनुसार इस्लामी राज्य कुफ्र (अधर्म) को सहन कर सकता है, परन्तु अत्याचार और अन्याय को सहन नहीं कर सकता।

(18)   इस्लाम कहता है कि जिसका पडोसी उसकी बुराई से सुरक्षित न हो वह ईमान नहीं लाया।

(19)   जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की एक बालिश्त भूमि भी अनधिकार रूप से लेगा वह कघ्यिामत के दिन सात तह तक पृथ्वी में धॅसा दिया जाएगा।

(20)   इस्लाम में जो समता और बंधुत्व है वह संसार के किसी धर्म में नहीं है। हिन्दू धर्म में हरिजन घृणित और अपमानित माने जाते हैं। इस भावना के विरूद्ध 2500 वर्ष पूर्व महात्मा बुदद्ध ने आवाज उठाई और तब से अब तक अनेक सुधारकों ने इस भावना को बदलने का प्रयास किया। आधुनिक काल में महात्मा गाँधी ने अथक प्रयास किया किन्तु वे भी हिन्दुओं की इस भावना को बदलने में सफल नहीं हो सके। इसी प्रकार ईसाइयों भी गोरे-काले का भेद है। गोरों का गिरजाघर अलग और कालों का गिरजाघर अलग होता है। गोरों के गिरजाघर में काले उपासना के लिए प्रवेश नहीं कर सकते। दक्षिणी अफ्रीका में इस युग में भी गोर ईसाई का नारा व्याप्त है और राष्टसंघ का नियंत्रण है। इस भेद-भाव को इस्लाम ने ऐसा जड से मिटाया कि इसी दक्षिणी अफ्रीका में ही एक जुलू के मुसलमान होते ही उसे मुस्लिम समाज में समानता प्राप्त हो जाती है, जबकि ईसाई होने पर ईसाई समाज में उसको यह पद प्राप्त नहीं होता। गाँधी जी ने इस्लाम की इस प्रेरक शक्ति के प्रति हार्दिद उदगार व्यक्त किया है।।
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रविवार, 11 जनवरी 2015

क्या इससे इन्कार मुमकिन है कि पैगम्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पा॰चजन्य’ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पत्रिका)

तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पा॰चजन्य’ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पत्रिका)
‘‘...क्या इससे इन्कार मुमकिन है कि पैगम्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? उन्होंने इतिहास की काया पलट दी और हमारे विश्व के हर क्षेत्र पर प्रभाव डाला। अतः अगर मैं कहूँ कि इस्लाम बुरा है तो इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में रहने वाले इस धर्म के अरबों (Billions) अनुयायियों के पास इतनी बुद्धि-विवेक नहीं है कि वे जिस धर्म के लिए जीते-मरते हैं उसी का विश्लेषण और उसकी रूपरेखा का अनुभव कर सकें। इस धर्म के अनुयायियों ने मानव-जीवन के लगभग सारे क्षेत्रों में नाम कमाया और हर किसी से उन्हें सम्मान मिला...।’’
‘‘हम उन (मुसलमानों) की किताबों का, या पैगम्बर के जीवन-वृत्तांत का, या उनके विकास व उन्नति के इतिहास का अध्ययन कम ही करते हैं... हममें से कितनों ने तवज्जोह के साथ उस परिस्थिति पर विचार किया है जो मुहम्मद(सल्ल.) के, पैगम्बर बनने के समय, 14 शताब्दियों पहले विद्यमान थे और जिनका बेमिसाल, प्रबल मुकाबला उन्होंने किया? जिस प्रकार से एक अकेले व्यक्ति के आत्म-बल तथा आयोजन-क्षमता ने हमारी ज़िन्दगियों को प्रभावित किया और समाज में उससे एक निर्णायक परिवर्तन आ गया, वह असाधारण था। फिर भी इसकी गतिशीलता के प्रति हमारा जो अज्ञान है वह हमारे लिए एक ऐसे मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है जिसे मान्य नहीं किया जा सकता।’’ आलेख (Know thy neighbor's it's Ramzan) अंग्रेजी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत
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