शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

इस्लाम की विशेषताए (Characteristics of Islam)

इस्लाम की विशेषताए 
राजेन्द्र नारायण लाल अपनी पुस्तक ‘इस्लाम एक स्वयं सिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था‘ में मुहम्मद, मदिरापान ,सूद (ब्याज),विधवा स्त्री एवं स्त्री अधिकार आदि बारे में अपने लेख ‘इस्लाम की विशेषताऐं’ में लिखते हैं
(1)     इस्लाम की सबसे प्रधान विशेषता उसका विशुद्ध एकेश्वरवाद(Oneness in God) है। इस्लाम के एकेश्वरवाद में न किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ और न विकार उत्पन्न हुआ। इसकी नींव इतनी सुदृढ़ है कि इसमें मिश्रण का प्रवेश असंभव है। इसका कारण इस्लाम का यह आधारभूत कलिमा है- (La-Ilaah-IL-LALLAH-MOHAMMADUR-RASOOL-ALLAH)‘‘मैं स्वीकार करता हूँ कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य और उपास्य नहीं और मुहम्मद ईश्वर के बन्दे और उसके दूत हैं। मुहम्मद साहब को ईश्वर(Allah) ने कुरआन में अधिकतर ‘अब्द’ कहा है जिसका अर्थ आज्ञाकारी बन्दा है, अतएव ईश्वर का बन्दा न ईश्वर का अवतार हो सकता है और न उपास्य हो सकता है।

(2)     इस्लाम ने मदिरा को हर प्रकार के पापों की जननी कहा है। अतः इस्लाम में केवल नैतिकता के आधार पर मदिरापान निषेघ नहीं है अपितु घोर दंडनीय अपराध भी है। अर्थात कोड़े की सजा। इस्लाम में सिदधंततः ताड़ी, भंग आदि सभी मादक वस्तुएँ निषिद्ध है। जबकि....

(3)    जकात यह श्रेय केवल इस्लाम को प्राप्त है कि उसके पाँच आधारभूत कर्तव्यों-नमाज (उपासना) , रोजा (ब्रत) हज (काबा की तीर्थ की यात्रा), में एक जकात भी है। इस जकात को प्राप्त करने के पात्रों में निर्धन भी हैं और ऐसे कर्जदार भी हैं ‘जो कर्ज अदा करने में असमर्थ हों या इतना धन न रखते हों कि कोई कारोबार कर सकें। नियमित रूप से धनवानों के धन में इस्लाम ने मूलतः धनहीनों का अधिकार है उनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे जकात लेने के वास्ते भिक्षुक बनकर धनवानों के पास जाएँ। यह शासन का कर्तव्य है कि वह धनवानों से ज़कात वसूल करे और उसके अधिकारियों को दे। धनहीनों का ऐसा आदर किसी धर्म में नहीं है।

(4)     इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि...

(5)   सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए कुरआन में सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा (रसूल) से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2/279)

(6)   इस्लाम ही को यह श्रेय भी प्राप्त है कि उसने धार्मिक रूप से रिश्वत (घूस) को निषिद्ध् ठहराया है
     (कुरआन 2/188) हजरत मुहम्मद साहब ने रिश्वत देनेवाले और लेनेवाले दोनों पर खुदा की लानत भेजी है।

(7)   इस्लाम ही ने सबसे प्रथम स्त्रियों को सम्पति का अधिकार प्रदान किया, उसने मृतक की सम्पति में भी स्त्रियों को भाग दिया। इस्लाम में विधवा के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। पति की मृत्यू के चार महीने दस दिन बाद वह अपना विवाह कर सकती है।

(8)   इस्लाम ही ने अनिवार्य परिस्थिति में स्त्रियों को पति त्याग (खुला) का अधिकार प्रदान किया है।

(9)   यह इस्लाम ही है जिसने किसी स्त्री के सतीत्व पर लांछना लगाने वाले के लिए चार साक्ष्य उपस्थित करना अनिवार्य ठहराया है और यदि वह चार उपस्थित न कर सके तो उसके लिए अस्सी कोडों की सजा नियत की है। इस संदर्भ में श्री रामचन्द्र और हजरत मुहम्मद साहब का आचरण विचारणीय है। उसने निर्दोष स्त्रियों पर दोषारोपण को वैधानिक अपराध ठहराया।

(10)   इस्लाम ही है जिसे कम नापने और कम तौलने को वैधानिक अपराध के साथ धार्मिक पाप भी ठहराया और बताया कि परलोक में भी इसकी पूछ होगी।

(11)   इस्लाम ने अनाथों के सम्पत्तिहरण को धार्मिक पाप ठहराया है। (कुरआनः 4/10, 4/127)

(12)   इस्लाम कहता है कि यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से प्रेम करो।

(13)   इस्लाम कहता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है जो उसके बन्दों के साथ अधिक से अधिक भलाई करता है।

(14)   इस्लाम कहता है कि जो प्राणियों पर दया करता है, ईश्वर उसपर दया करता है।

(15)   दया ईमान की निशानी है। जिसमें दया नहीं उसमें ईमान नहीं।

(16)   किसी का ईमान पूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने साथी को अपने समान न समझे।

(17)   इस्लाम के अनुसार इस्लामी राज्य कुफ्र (अधर्म) को सहन कर सकता है, परन्तु अत्याचार और अन्याय को सहन नहीं कर सकता।

(18)   इस्लाम कहता है कि जिसका पडोसी उसकी बुराई से सुरक्षित न हो वह ईमान नहीं लाया।

(19)   जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की एक बालिश्त भूमि भी अनधिकार रूप से लेगा वह कघ्यिामत के दिन सात तह तक पृथ्वी में धॅसा दिया जाएगा।

(20)   इस्लाम में जो समता और बंधुत्व है वह संसार के किसी धर्म में नहीं है। हिन्दू धर्म में हरिजन घृणित और अपमानित माने जाते हैं। इस भावना के विरूद्ध 2500 वर्ष पूर्व महात्मा बुदद्ध ने आवाज उठाई और तब से अब तक अनेक सुधारकों ने इस भावना को बदलने का प्रयास किया। आधुनिक काल में महात्मा गाँधी ने अथक प्रयास किया किन्तु वे भी हिन्दुओं की इस भावना को बदलने में सफल नहीं हो सके। इसी प्रकार ईसाइयों भी गोरे-काले का भेद है। गोरों का गिरजाघर अलग और कालों का गिरजाघर अलग होता है। गोरों के गिरजाघर में काले उपासना के लिए प्रवेश नहीं कर सकते। दक्षिणी अफ्रीका में इस युग में भी गोर ईसाई का नारा व्याप्त है और राष्टसंघ का नियंत्रण है। इस भेद-भाव को इस्लाम ने ऐसा जड से मिटाया कि इसी दक्षिणी अफ्रीका में ही एक जुलू के मुसलमान होते ही उसे मुस्लिम समाज में समानता प्राप्त हो जाती है, जबकि ईसाई होने पर ईसाई समाज में उसको यह पद प्राप्त नहीं होता। गाँधी जी ने इस्लाम की इस प्रेरक शक्ति के प्रति हार्दिद उदगार व्यक्त किया है।।
Compiled by
zainul.abdin.initiative
9838658933

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