‘...हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कोई इंसान उस वक्त तक मोमिन/सच्चा मुस्लिम नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई-बन्दों पड़ोसियों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है। ...’
और उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है ...‘‘सारी दुनिया अल्लाह का परिवार है वही इंसान अल्लाह (ईष्वर) का सच्चा बंदा (भक्त) है जो खुदा के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’
‘‘...अगर तुम्हें खुदा की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’
...सूद/ब्याज की प्रवृत्ति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। हजरत मुहम्मद का लाया धर्म इस्लाम ही अकेला धर्म व जीवन पद्वति है जिसने सूद को और उसके हर प्रकार को हराम (अवैध) ठहराया है...।
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मुन्षी प्रेमचन्द ‘इस्लामी सभ्यता’
साप्ताहिक प्रताप विशेषांक दिसम्बर 1925
और उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है ...‘‘सारी दुनिया अल्लाह का परिवार है वही इंसान अल्लाह (ईष्वर) का सच्चा बंदा (भक्त) है जो खुदा के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’
‘‘...अगर तुम्हें खुदा की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’
...सूद/ब्याज की प्रवृत्ति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। हजरत मुहम्मद का लाया धर्म इस्लाम ही अकेला धर्म व जीवन पद्वति है जिसने सूद को और उसके हर प्रकार को हराम (अवैध) ठहराया है...।
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मुन्षी प्रेमचन्द ‘इस्लामी सभ्यता’
साप्ताहिक प्रताप विशेषांक दिसम्बर 1925
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