शनिवार, 30 अप्रैल 2016

पैग़म्बरों का मिशन Mission of Prophet


पिछले ज़मानों में ख़ुदा की तरफ़ से जितने भी पैग़म्बर (ईश्वरदूत) आए वह सब इसी लिए आए कि वह इंसान को शिर्क यानी अनेकेश्वरवाद और अंधविश्वास से डराएँ और उन्हें एकेश्वरवाद यानी तौहीद की तालीम दें, ताकि इंसान इसके मुताबिक़, अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाए और दुनिया और मौत के बाद की ज़िंदगी में ख़ुशियाँ हासिल कर सके।
मगर इंसानियत के लम्बे इतिहास में लगभग हर पैग़म्बर के साथ ऐसा हुआ कि लोगों की ज़्यादा तादाद ने उनकी बात को मानने से इन्कार कर दिया। ख़ास तौर पर समाज के बड़े लोग पैग़म्बर को मानने या उनका साथ देने पर कभी राजी नहीं हुए। इस ऐतिहासिक घटना को क़ुरआन में इस तरह बताया गया है।
--- अफ़सोस है बन्दों के ऊपर, जो रसूल भी उनके पास आया वह उसका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे (या सीन :36:30)।
ख़ुदा के पैग़म्बरों को नज़रअंदाज़ करने का यह मामला इस हद तक आगे बढ़ा कि पिछले ज़माने में आने वाले पैग़म्बरों को इंसानी इतिहास के रिकॉर्ड या अभिलेख से मिटा दिया गया। यही वजह है कि पुराने ज़माने के लिखित और दर्ज इतिहास में बादशाहों की दास्तानें तो हम पढ़ते हैं मगर सिर्फ़ आख़िरी पैग़म्बर - मुहम्मद (सलल्लाहो अलैह वसल्लम) को छोड़ कर पैग़म्बरों का ज़िक्र और चर्चा दर्ज इतिहास में सिरे से मौजूद ही नहीं।
इस मामले में सिर्फ़ मुहम्मद (सल्लo) का ज़िक्र, इंसानी लिखित इतिहास में अकेला अपवाद है। आपको अल्लाह की ख़ास मदद हासिल हुई। इसके नतीजे में आप ने पहली बार अनेकेश्वरवाद को रद्द करके एकेश्वरवादी-यक़ीन की प्रेरणा और आंदोलन को एक ऐसी ज़िन्दा तहरीक बनाया जिसने इस आंदोलन को फ़िक्री और वैचारिक अवस्था से उठा कर व्यावहारिक क्रांति की अवस्था तक पहुँचा दिया और इसकी एक स्थाई और मज़बूत इतिहास बना दी।

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