रविवार, 26 जून 2016

"इस्लाम दर्शनशास्त्र नहीं, बल्कि सामाजिक योजना है "

"इस्लाम दर्शनशास्त्र नहीं, बल्कि सामाजिक योजना है "
1. इस्लाम ने बुतपरस्ती की लानत से छुटकारा दिलाया।
इस्लाम के एकेश्वरवाद के प्रति अरब के बद्दुओं के दृढ़ विश्वास ने न केवल क़बीलों के बुतों को ध्वस्त कर दिया बल्कि वे इतिहास में एक ऐसी अजेय शक्ति बनकर उभरे जिसने मानवता को बुतपरस्ती की लानत से छुटकारा दिलाया। ईसाइयों के, संन्यास और चमत्कारों पर भरोसा करने की घातक प्रवृत्ति को झिकझोड़ कर रख दिया और पादरियों और हवारियों (मसीह के साथियों) के पूजा की कुप्रथा से भी छुटकारा दिला दिया।
‘‘सामाजिक बिखराव और आध्यात्मिक बेचैनी के घोर अंधकार वाले वातावरण में अरब के पैग़म्बर की आशावान एवं सशक्त घोषणा आशा की एक प्रज्वलित किरण बनकर उभरी। लाखों लोगों का मन उस नये धर्म की सांसारिक एवं पारलौकिक सफलता की ओर आकर्षित हुआ।
इस्लाम के विजयी बिगुल ने सोई हुई निराश ज़िन्दगियों को जगा दिया। मानव-प्रवृति के स्वस्थ रुझान ने उन लोगों में भी हिम्मत पैदा की जो ईसा के प्रतिष्ठित साथियों के पतनशील होने के बाद संसार-विमुखता के अंधविश्वासी कल्पना के शिकार हो चुके थे। वे लोग इस नई आस्था से जुड़ाव महसूस करने लगे।
इस्लाम ने उन लोगों को जो अपमान के गढ़े में पड़े हुए थे एक नई सोच प्रदान की। इसलिए जो उथल-पुथल पैदा हुई उससे एक नए समाज का गठन हुआ जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को यह अवसर उपलब्ध था कि वह अपनी स्वाभाविक क्षमताओं के अनुसार आगे बढ़ सके और तरक़्क़ी कर सके।
इस्लाम की जोशीली तहरीक और मुस्लिम विजयताओं के उदार रवैयों ने उत्तरी अफ़्रीक़ा की उपजाऊ भूमि में लोगों के कठिन परिश्रम के कारण जल्द ही हरियाली छा गई और लोगों की ख़ुशहाली वापस आ गई…।
‘‘…ईसाइयत के पतन ने एक नये शक्तिशाली धर्म के उदय को ऐतिहासिक ज़रूरत बना दिया था। इस्लाम ने अपने अनुयायियों को एक सुन्दर स्वर्ग की कल्पना ही नहीं दी बल्कि उसने दुनिया को पराजित करने का आह्वान भी किया।
2. जन्नत की ख़ुशियों भरी ज़िन्दगी।
इस्लाम ने बताया कि जन्नत की ख़ुशियों भरी ज़िन्दगी इस दुनिया में भी संभव हैं। मुहम्मद (सल्ल॰) ने अपने लोगों को क़ौमी एकता के धागे में ही नहीं पिरोया बल्कि पूरी क़ौम के अन्दर वह भाव और जोश पैदा किया कि वे हर जगह इन्क़िलाब का नारा बुलन्द करे जिसे सुनकर पड़ोसी देशों के शोषित/पीड़ित लोगों ने भी इस्लाम का आगे बढ़कर स्वागत किया।इस्लाम की इस सफलता का कारण आध्यात्मिक भी था, सामाजिक भी था और राजनीतिक भी।
इसी बात पर ज़ोर देते हुए गिबन कहता है: ज़रतुश्त की व्यवस्था से अधिक स्वच्छ एवं पारदर्शी और मूसा के क़ानूनों से कहीं अधिक लचीला मुहम्मद (सल्ल॰) का यह धर्म, बुद्धि एवं विवेक से अधिक निकट है। अंधविश्वास और पहेली से इसकी तुलना नहीं की जा सकती जिसने सातवीं शताब्दी में मूसा की शिक्षाओं को बदनुमा बना दिया था…।
‘‘…हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित है और एकेश्वरवाद की आस्था ही उसकी ठोस बुनियाद भी है। इसमें किसी प्रकार के छूट की गुंजाइश नहीं और अपनी इसी विशेषता के कारण वह धर्म का सबसे श्रेष्ठ पैमाना भी बना। दार्शनिक दृष्टिकोण से भी एकेश्वरवाद की कल्पना ही इस धर्म की बुनियाद है। लेकिन एकेश्वरवाद की यह कल्पना भी अनेक प्रकार के अंधविश्वास को जन्म दे सकती है यदि यह दृष्टिकोण सामने न हो कि अल्लाह ने सृष्टि की रचना की है और इस सृष्टि से पहले कुछ नहीं था।
प्राचीन दार्शनिक, चाहे वे यूनान के हों या भारत के, उनके यहां सृष्टि की रचना की यह कल्पना नहीं मिलती। यही कारण है कि जो धर्म उस प्राचीन दार्शनिक सोच से प्रभावित थे वे एकेश्वरवाद का नज़रिया क़ायम नहीं कर सके। जिसकी वजह से सभी बड़े-बड़े धर्म, चाहे वह हिन्दू धर्म हो, यहूदियत हो या ईसाइयत, धीरे-धीरे कई ख़ुदाओं को मानने लगे। यही कारण है कि वे सभी धर्म अपनी महानता खो बैठे। क्योंकि कई ख़ुदाओं की कल्पना सृष्टि को ख़ुदा के साथ सम्मिलित कर देती है जिससे ख़ुदा की कल्पना पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इससे पैदा करने की कल्पना ही समाप्त हो जाती है, इसलिए ख़ुदा की कल्पना भी समाप्त हो जाती है। यदि यह दुनिया अपने आप स्थापित हो सकती है तो यह ज़रूरी नहीं कि उसका कोई रचयिता भी हो और जब उसके अन्दर से पैदा करने की क्षमता समाप्त हो जाती है तो फिर ख़ुदा की भी आवश्यकता नहीं रहती।
मुहम्मद (सल्ल॰) का धर्म इस कठिनाई को आसानी से हल कर लेता है। यह ख़ुदा की कल्पना को आरंभिक बुद्धिवादियों की कठिनाइयों से आज़ाद करके यह दावा करता है कि अल्लाह ने ही सृष्टि की रचना की है। इस रचना से पहले कुछ नहीं था। अब अल्लाह अपनी पूरी शान और प्रतिष्ठा के साथ विराजमान हो जाता है। उसके अन्दर इस चीज़ की क्षमता एवं शक्ति है कि न केवल यह कि वह इस सृष्टि की रचना कर सकता है बल्कि अनेक सृष्टि की रचना करने की क्षमता रखता है। यह उसके शक्तिशाली और हैयुल क़ैयूम होने की दलील है। ख़ुदा को इस तरह स्थापित करने और स्थायित्व प्रदान करने की कल्पना ही मुहम्मद(सल्ल॰) का कारनामा है।अपने इस कारनामे के कारण ही इतिहास ने उन्हें सबसे स्वच्छ एवं पाक धर्म की बुनियाद रखने वाला माना है। क्योंकि दूसरे सभी धर्म अपने समस्त भौतिक/प्राभौतिक कल्पनाओं, धार्मिक बारीकियों और दार्शनिक तर्कों/कुतर्कों के कारण न केवल त्रुटिपूर्ण धर्म हैं बल्कि केवल नाम के धर्म हैं…।
‘‘…यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत में मुसलमानों की विजय के समय ऐसे लाखों लोग यहां मौजूद थे जिनके नज़दीक हिन्दू क़ानूनों के प्रति व़फादार रहने का कोई औचित्य नहीं था। और ब्राह्मणों की कट्टर धार्मिकता एवं परम्पराओं की रक्षा उनके नज़दीक निरर्थक थे। ऐसे सभी लोग अपनी हिन्दू विरासत को इस्लाम के समानता के क़ानून के लिए त्यागने को तैयार थे जो उन्हें हर प्रकार की सुरक्षा भी उपलब्ध करा रहा था ताकि वे कट्टर हिन्दुत्ववादियों के अत्याचार से छुटकारा हासिल कर सके । फिर भी हैवेल (Havel) इस बात से संतुष्ट नहीं था। हार कर उसने कहा:
3. "इस्लाम दर्शनशास्त्र नहीं, बल्कि सामाजिक योजना"
‘‘यह इस्लाम का दर्शनशास्त्र नहीं था बल्कि उसकी सामाजिक योजना थी जिसके कारण लाखों लोगों ने इस धर्म को स्वीकार कर लिया। यह बात बिल्कुल सही है कि आम लोग दर्शन से प्रभावित नहीं होते। वे सामाजिक योजनाओं से अधिक प्रभावित होते हैं जो उन्हें मौजूदा ज़िन्दगी से बेहतर ज़िन्दगी की ज़मानत दे रहा था।
– इस्लाम ने जीवन की ऐसी व्यवस्था दी जो करोड़ों लोगों की ख़ुशी की वजह बना।
‘‘….ईरानी और मुग़ल विजेयताओं के अन्दर वह पारम्परिक उदारता और आज़ादपसन्दी मिलती है जो आरंभिक मुसलमानों की विशेषता थी। केवल यह सच्चाई कि दूर-दराज़ के मुट्ठी भर हमलावर इतने बड़े देश का इतनी लंबी अवधि तक शासक बने रहे और उनके अक़ीदे को लाखों लोगों ने अपनाकर अपना धर्म परिवर्तन कर लिया, यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि वे भारतीय समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे थे।
भारत में मुस्लिम शक्ति केवल कुछ हमलावरों की बहादुरी के कारण संगठित नहीं हुई थी बल्कि इस्लामी क़ानून के विकासमुखी महत्व और उसके प्रचार के कारण हुई थी। ऐसा हैवेल जैसा मुस्लिम विरोधी इतिहासकार भी मानता है। मुसलमानों की राजनैतिक व्यवस्था का हिन्दू सामाजिक जीवन पर दो तरह का प्रभाव पड़ा। इससे जाति-पाति के शिकंजे और मज़बूत हुए जिसके कारण उसके विरुद्ध बग़ावत शुरू हो गई। साथ ही निचली और कमज़ोर जातियों के लिए बेहतर जीवन और भविष्य की ज़मानत उन्हें अपना धर्म छोड़कर नया धर्म अपनाने के लिए मजबूर करती रही। इसी की वजह से शूद्र न केवल आज़ाद हुए बल्कि कुछ मामलों में वे ब्राह्मणों के मालिक भी बन गए।
— ‘हिस्टोरिकल रोल ऑफ इस्लाम ऐन एस्से ऑन इस्लामिक कल्चर’ क्रिटिकल क्वेस्ट पब्लिकेशन कलकत्ता-1939 से उद्धृत

शनिवार, 30 अप्रैल 2016

कुरआन , पैगम्बर मुहम्मद , भविष्य Quran , Prophet Muhammad , Future

कुरआन भविष्य से जुड़ी बातों को एक चुनौती के रूप में पेश करता है।
क़ुरआन दुनिया में अकेली किताब है जिसमे लिखा है कि तुम एक भी गलती ढूंढ़कर बताओ और तुम ऐसा हर्गिज नहीं कर पाओगे –
डॉ. गैरी मिलर
एक अहम ईसाई धर्म प्रचारक कनाडा के गैरी मिलर ने इस्लाम अपना लिया और वे इस्लाम के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक साबित हुए। मिलर सक्रिय ईसाई प्रचारक थे और बाइबिल की शिक्षाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी। वे गणित को काफी पसंद करते थे और यही वजह है कि तर्क में डॉ. मिलर का गहरा विश्वास था।
डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, “साइंस का एक जाना पहचाना सिद्धांत है जो आपको गलतियां और कमियां निकालने का अधिकार देता है, जब तक कि यह सही साबित ना हो जाए। इसे फालसिफिकेशन टेस्ट कहते हैं।”
डॉ. मिलर कहते हैं, “ताज्जुब की बात है कि कुरआन खुद मुसलमानों और गैर मुसलमानों से इस किताब में कमियां निकालने की कोशिश करने को कहता है और दावा करता है कि वे इसमें कभी कोई कमी नहीं तलाश पाएंगे।”
वे कहते हैं, “दुनिया में कोई ऐसा लेखक नहीं है जो कोई किताब लिखकर यह कहने की हिम्मत कर सके कि उसकी लिखी किताब में किसी भी तरह की कमी नहीं है। दूसरी तरफ कुरआन कहता है कि उसमें कोई कमी या दोष नहीं है और कहता है कि तुम एक भी गलती ढूंढ़कर बताओ और तुम ऐसा हर्गिज नहीं कर पाओगे।”
0एक अहम ईसाई धर्म प्रचारक कनाडा के गैरी मिलर ने इस्लाम अपना लिया और वे इस्लाम के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक साबित हुए। मिलर सक्रिय ईसाई प्रचारक थे और बाइबिल की शिक्षाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी।
वे गणित को काफी पसंद करते थे और यही वजह है कि तर्क में मिलर का गहरा विश्वास था। एक दिन गैरी मिलर ने कमियां निकालने के मकसद से कुरआन का अध्ययन करने का निश्चय किया ताकि वह इन कमियों को आधार बनाकर मुसलमानों को ईसाइयत की तरफ बुला सके और उन्हें ईसाई बना सके।
वे सोचते थे कि कुरआन चौदह सौ साल पहले लिखी गई एक ऐसी किताब होगी जिसमें रेगिस्तान और उससे जुड़े कहानी-किस्से होंगे। लेकिन उन्होंने कुरआन का अध्ययन किया तो वह दंग रह गए। कुरआन को पढ़कर वह आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कुरआन के अध्ययन में पाया कि दुनिया में कुरआन जैसी कोई दूसरी किताब नहीं है।
पहले डॉ. मिलर ने सोचा था कि कुरआन में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के मुश्किल भरे दौर के किस्से होंगे जैसे उनकी बीवी खदीजा रजि. और उनके बेटे-बेटियों की मौत से जुड़े किस्से। लेकिन उन्होंने कुरआन में ऐसे कोई किस्से नहीं पाए बल्कि वे कुरआन में मदर मैरी के नाम से पूरा एक अध्याय देखकर दंग रह गए।
डॉ. मिलर ने पाया कि मैरी के अध्याय सूरा मरियम में जो इज्जत और ओहदा पैगम्बर ईसा की मां मरियम को दिया गया है वैसा सम्मान उन्हें ना तो बाइबिल में दिया गया और ना ही ईसाई लेखकों द्वारा लिखी गई किताबों में वह मान-सम्मान दिया गया।
यही नहीं डॉ. मिलर ने पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की बेटी फातिमा रजि. और उनकी बीवी आइशा रजि. के नाम से कुरआन में कोई अध्याय नहीं पाया। उन्होंने जाना कि कुरआन में ईसा मसीह का नाम 25 बार आया है जबकि खुद मुहम्मद सल्ल. का नाम केवल चार बार ही आया है। यह सब जानने के बाद वे ज्यादा कन्फ्यूज हो गए।
वे लगातार कुरआन का अध्ययन करते रहे इस सोच के साथ कि इसमें उन्हें जरूर कमियां और दोष पकड़ में आएंगे लेकिन कुरआन का अध्याय अल निशा की 82 आयत पढ़कर वे आश्चर्यचकित रह गए, इस अध्याय में हैं-
क्या वे कुरआन में गौर और फिक्र नहीं करते। अगर यह अल्लाह के अलावा किसी और की तरफ से होती तो वे इसमें निश्चय ही बेमेल बातें और विरोधाभास पाते।
कुरआन की इस आयत के बारे में डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, “साइंस का एक जाना पहचाना सिद्धांत है जो आपको गलतियां और कमियां निकालने का अधिकार देता है जब तक कि यह सही साबित ना हो जाए। इसे फालसिफिकेशन टेस्ट कहते हैं।”
डॉ. मिलर कहते हैं, “ताज्जुब की बात है कि कुरआन खुद मुसलमानों और गैर मुसलमानों से इस किताब में कमियां निकालने की कोशिश करने को कहता है और दावा करता है कि वे इसमें कभी कोई कमी नहीं तलाश पाएंगे।”
वे कहते हैं, “दुनिया में कोई ऐसा लेखक नहीं है जो कोई किताब लिखकर यह कहने की हिम्मत कर सके कि उसकी लिखी किताब में किसी भी तरह की कमी नहीं है। दूसरी तरफ कुरआन कहता है कि उसमें कोई कमी या दोष नहीं है और कहता है कि तुम एक भी गलती ढूंढ़कर बताओ और तुम ऐसा हर्गिज नहीं कर पाओगे।”
कुरआन की दूसरी आयत जिससे डॉ. गैरी मिलर प्रभावित हुुए वह है सूरा अंबिया जिसमें है-
क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती मिले हुए थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जिंदा चीज बनाई, तो क्या वे मानते नहीं ?
कुरआन (21:30)
डॉ. मिलर कहते हैं, “यह आयत दरअसल वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय है, इस विषय पर 1973 में नोबेल पुरस्कार दिया गया और जो महान विस्फोट की थ्योरी से संबंधित है। इस थ्योरी के मुताबिक इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति इसी विस्फोट के परिणामस्वरूप थी।”
डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, “अब हम बात करते हैं पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को शैतान द्वारा मदद करने के दुष्प्रचार के बारे में।”
अल्लाह कुरआन में कहता है-
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं। यह काम न तो उनको सजता है और न ये उनके बस का ही है। वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए हैं।
कुरआन(26:210-212)
अत: जब तुम कुरआन पढऩे लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांग लिया करो।
कुरआन (16: 98)
डॉ. मिलर कहते हैं, “आप खुद सोचिए और बताइए क्या यह शैतान द्वारा रचित किताब हो सकती है। शैतान खुद अपने लिए ही आखिर क्यों कहेगा कि कुरआन को पढऩे से पहले तुम शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांगों।”
क्या यह चमत्कारिक कुरआन की चमत्कारिक आयत नहीं है ?
क्या यह आयत उन लोगों के मुंह पर करारा चांटा नहीं है जो यह कहते हैं कि कुरआन शैतान की तरफ से अवतरित ग्रंथ है।
डॉ. मिलर को प्रभावित करने वाली कुरआन के अध्यायों में से एक अबू लहब से जुड़ा अध्याय है। डॉ. मिलर कहते हैं, “अबू लहब इस्लाम से इतनी नफरत करता था कि वह पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. का अपमान करने के लिए उनका अक्सर पीछा करता था। वह देखता कि मुहम्मद सल्ल. किसी अजनबी से बात कर रहे हैं तो वह इंतजार करता और उनके जाने के बाद उस शख्स से पूछता कि मुहम्मद सल्ल. तुमसे क्या कह रहे थे? फिर वह उनकी बात को नकारता, अगर वे कहते कि यह सफेद है तो अबू लहब उसे काला बताता और पैगम्बर की बताई हुई रात को वह दिन बताता यानी उनकी हर बात को झूठी करार देता। इस तरह अबू लहब पैगम्बर के मैसेज के मामले में लोगों को गुमराह करने का काम करता।”
अबू लहब की मौत से दस साल पहले मुहम्मद सल्ल.पर एक सूरा (अध्याय) अवतरित हुई जिसमें बताया गया कि अबू लहब दोजख में जाएगा यानी अबू लहब कभी इस्लाम नहीं अपनाएगा। अपनी मौत से पहले उन दस सालों के दौरान अबू लहब ने कभी भी नहीं कहा कि “देखो मुहम्मद कह रहा है कि मैं कभी मुस्लिम नहीं बनूंगा और दोजख की आग में जलूंगा जबकि मैं आप लोगों से कह रहा हूं कि मैं इस्लाम अपनाकर मुसलमान बनना चाहता हूं। अब तुम मुहम्मद के बारे में क्या सोचते हो? वह सच्चा है या झूठा ? उस पर अवतरित होने वाली वाणी आखिर ईश्वर की तरफ से कैसे हुई ?”
लेकिन अबू लहब ने ऐसा कुछ नहीं कहा। मुहम्मद सल्ल. को हर मामले और हर बात में झूठलाने वाले अबू लहब ने इस मामले में ऐसा कुछ नहीं कहा!
दूसरे शब्दों में कहें कि अबू लहब के पास एक ऐसा मौका था जिसके जरिए वह पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को झूठा साबित कर सकता था। लेकिन इन दस सालों के दौरान ना अबू लहब ने इस्लाम अपनाया और ना इस्लाम अपनाने का ढोंग किया। अबू लहब के पास इन दस सालों के दौरान एक मिनट में इस्लाम को झूठा साबित करने का मौका था।
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, सवाल उठता है आखिर क्यों ऐसा नहीं हुआ ?
क्योंकि यह मुहम्मद सल्ल. के शब्द नहीं थे बल्कि उस अल्लाह के शब्द थे जो जानता था कि अबू लहब कभी भी मुस्लिम नहीं बनेगा। अगर ये पैगाम अल्लाह की तरफ से ना होता तो आखिर मुहम्मद सल्ल. कैसे जान पाते कि अबू लहब इन दस सालों में ऐसा ही रहेगा जैसा कि इस सूरा में जिक्र किया गया है।
क्या किसी शख्स के लिए ऐसा कहना या ऐसा कहने का जौखिम लेना संभव है ?
इस सबसे यही पता चलता है, यही निष्कर्ष निकलता है कि यह सूरा ईश्वर की ओर से अवतरित हुई जो हर तरह का ज्ञान रखता है।
टूट गए अबू लहब के दोनों हाथ और वह स्वयं भी विनष्ट हो गया! न उसका माल उसके काम आया और न वह कुछ जो उसने कमाया। वह शीघ्र ही प्रज्वलित भड़कती आग में पड़ेगा, और उसकी स्त्री भी ईधन लादनेवाली, उसकी गरदन में खजूर के रेशों की बटी हुई रस्सी पड़ी है।
कुरआन (111:1-5)
डॉ. गैरी मिलर कुरआन की एक और सूरा का जिक्र करते हैं जिससे वे काफी प्रभावित हुए।
वे कहते हैं कुरआन के चमत्कारों में से एक चमत्कार यह है कि कुरआन भविष्य से जुड़ी बातों को एक चुनौती के रूप में पेश करता है। इस तरह की भविष्यवाणी करना किसी इंसान के बूते की बात नहीं है। उदाहरण के लिए यहूदियों और मुसलमानों के बीच के रिश्ते के मामले में कुरआन कहता है कि यहूदी मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सच भी है। आज भी मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन यहूदी ही हैं।
डॉ. मिलर आगे कहते हैं, “यह एक तगड़ी चुनौती है और यहूदियों को इस्लाम को गलत साबित करने का मौका भी देती है कि वे मुसलमानों से चंद साल दोस्ताना रिश्ते रखकर यह कह दें कि देखो भाई हम तो तुमसे दोस्ताना रिश्ता रखते हैं और तुम्हारा यह कुरआन हमें तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन बता रहा है, तो क्या तुम्हारा कुरआन गलत नहीं हुआ? लेकिन पिछले चौदह सौ सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ। यानी यहूदियों ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कुरआन पर उंगली उठाई जा सके। और आगे भी ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि यह ईश्वर के शब्द हैं जो सिर्फ भविष्य की ही नहीं हर काल की हर बात से वाकिफ है। कुरआन किसी इंसान का रचा हुआ नहीं है।”
डॉ. मिलर कहते हैं, “आप गौर कर सकते हैं कि कि मुसलमानों और यहूदियों के बीच के संबंधों की बात करने वाली कुरआन की यह आयत इंसानी दिमाग के सामने एक चुनौती पेश करती है।”
“तुम ईमान वालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालों के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि ‘हम नसारा (ईसाई) हैं।” यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते।
जब वे उसे सुनते है जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आंखें आंसुओं से छलकने लगती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं, “हमारे रब! हम ईमान ले आए। अत तू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले।”
“और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुंचा है उस पर ईमान क्यों न लाएं, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट करेगा।”
कुरआन (5:82-84)
यह आयतें डॉ. गैरी मिलर पर भी लागू होती है। मिलर पर भी यह आयत सच साबित हुई है जैसा कि डॉ. गैरी मिलर पहले ईसाई थे लेकिन जब सच सामने आया तो इन्होंने इस्लाम अपना लिया और मुसलमान बनकर इस्लाम के एक मजबूत प्रचारक बन गए। उन्होंने अपना नाम अब्दुल अहद उमर रखा।
डॉ. मिलर कुरआन की प्रस्तुति को अनूठी और चमत्कारिक मानते हैं और कहते है कि इसमें कोई शक नहीं कि कुरआन एकदम अलग हटकर और चमत्कारिक है। दुनिया में कोई भी किताब इस जैसी नहीं है। कुरआन जब कोई खास जानकारी देता है तो बताता है कि तुम इससे पहले यह नहीं जानते थे।
ऐसा ही एक उदाहरण है-
“ऐ नबी, ये गैब की खबरें हैं जो हम तुमको वह्य (प्रकाशना) के जरिए बता रहे हैं, वरना तुम उस वक्त वहां मौजूद न थे,जब हैकल के खादिम यह फैसला करने के लिए कि मरयम का सरपरस्त कौन हो, अपने-अपने कलम फेंक रहे थे (यानी कुरआ-अंदाजी कर रहे थे), और न तुम उस वक्त हाजिर थे जब वे आपस में झगड़ रहे थे।”
कुरआन (3:44)
“ये परोक्ष की खबरें हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे हैं। इससे पहले तो न तुम्हें इनकी खबर थी और न तुम्हारी कौम को। अत: धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम डर रखनेवालो के पक्ष में है।”
कुरआन(11:49)
“ऐ नबी यह किस्सा गैब की खबरों में से है जो हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे हैं, वरना तुम उस वक्त मौजूद न थे जब यूसुफ के भाइयों ने आपस में सहमति कर साजिश की थी।”
कुरआन (12:102)
Miller_Garylडॉ. मिलर आगे कहते हैं, “दूसरी किसी भी किताब में आपको कुरआन जैसा अंदाज देखने को नहीं मिलेगा। बाकी दूसरी सभी किताबों में जो जानकारी दी जाती है उसमें उल्लेख होता है कि यह जानकारी कहां से ली गई है।”
उदाहरण के लिए बाइबिल जब पुराने राष्ट्रों का जिक्र करती है तो उसमें पढऩे को मिलता है कि वह राजा फलां देश में रहता था और फलां लीडर ने यह जंग लड़ी और फलां शख्स के काफी बच्चे थे जिनके नाम ये हैं। लेकिन बाइबिल में हमेशा यह पढऩे को मिलता है कि अगर आप इनके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो फलां किताब पढें जहां से यह जानकारी ली गई है।
डॉ. मिलर आगे कहते हैं, बाइबिल के विपरीत कुरआन कई नई जानकारी देता है और बताता है कि यह नई जानकारी है जो तुम्हें बताई जा रही है। कितने आश्चर्य की बात है कि कुरआन के अवतरण के दौरान मक्का के लोगों को यह नई बातें जानने को मिलती थीं। यह चुनौती भी थी कि यह जानकारी नई है, इन नई बातों के बारे में ना तो पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. जानते थे और न ही मक्का के लोग।
यही नहीं उस वक्त के लोगों ने यह कभी नहीं कहा कि कुरआन की बताई यह नई बात हम पहले से जानते हैं और यह हमारे लिए नई जानकारी नहीं है। किसी शख्स में यह कहने का साहस नहीं था कि हमसे झूठ कहा जा रहा है क्योंकि यह जानकारी वास्तव में नई थी जो किसी इंसान की तरफ से नहीं बल्कि उस सर्वज्ञानी अल्लाह की तरफ से थी जो भूत, भविष्य और वर्तमान के हर एक पहलू से पूरी तरह वाकिफ है।

इस्लाम में क्यों हराम है ब्याजखोरी …Why Interest Prohibited in Islam

अगर मुहम्मद (स.) साहब की शिक्षाओं पर मनन किया जाए तो – दो बातें उनमें सबसे अहम हैं। पहली, मुहम्मद साहब की शिक्षाएं किसी एक देश या धर्म के लिए नहीं हैं। वे सबके लिए हैं। … और दूसरी, उनकी शिक्षाएं आज से डेढ़ हजार साल पहले जितनी प्रासंगिक थीं, वे आज भी प्रासंगिक हैं।
– जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को स्वीकार करने के लिए मुहम्मद साहब ने कोई संदेश न दिया हो। उनकी बातें इंसानों को सच की राह दिखाती हैं।
– अर्थशास्त्र भले ही ब्याज(सूद) को मूलधन का किराया, शुल्क या कुछ और माने, लेकिन इस्लाम धर्म में ब्याज को अनुचित माना गया है। इस्लाम के मुताबिक ब्याज एक ऐसी व्यवस्था है जो अमीर को और अमीर बनाती है तथा गरीब को और ज्यादा गरीब।
– इस प्रकार यह शोषण का एक जरिया है, जिसे लागू करने से इंसानों को बचना चाहिए। इस्लाम ब्याज को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करता।
*किस चीज को खत्म कर देता है ब्याज –
पवित्र कुरआन स्पष्ट रूप से ब्याज को वर्जित मानती है। उसमें इंसानों के लिए कहा गया है – ईमान वालो, दो गुना और चार गुना करके ब्याज मत खाया करो। तुम अल्लाह से डरो।
ब्याज खाने से बरकत खत्म हो जाती है। गौरतलब है कि मुहम्मद(स.) साहब के दिव्य संदेश से पहले अरब निवासियों में ब्याज की प्रथा बड़े स्तर पर प्रचलित थी। इससे अमीरों का तो फायदा था लेकिन गरीब इसकी बेरहम मार से बच नहीं सकते थे। मुहम्मद(स.) साहब ने स्वयं गरीबी में जीवन बिताया था और उन्होंने इस प्रथा से कई लोगों को कष्ट उठाते देखा था।
*कुरआन में आगे बताया गया है कि ब्याज से भले ही इंसान को ऐसा लगे कि मेरा धन बढ़ रहा है लेकिन असल में उसका धन कम हो रहा है। ब्याज की कमाई से बरकत खत्म होती है। इससे इंसान द्वारा किए गए पुण्य भी खत्म हो जाते हैं।
– ब्याज धन को कम करता है लेकिन दान-पुण्य से धन कम नहीं होता। अल्लाह ऐसे धन में बरकत करता है।
*शैतानी धोखा –
कुरआन में बताया गया है कि जो लोग ब्याज हासिल करने का निश्चय कर चुके हैं और उसके लिए बहाने बनाते हैं तो यह एक शैतानी धोखा है।
– जो लोग ब्याज लेने को सही कारोबार साबित करने की कोशिश करते हैं और लोगों को भी यकीन दिलाते हैं कि ब्याज लेना उचित है तो ऐसे लोग भी इसी प्रकार के शैतानी धोखे के शिकार हैं।
*कयामत के दिन ब्याजखोरो का क्या होगा –
जो लोग ब्याज खाते हैं, उनके बारे में कहा गया है कि वे कयामत के दिन खड़े नहीं हो सकेंगे। उसी तरह से जैसे किसी को शैतान ने छूकर पागल कर दिया हो। यह इसलिए, क्योंकि वे ही कहा करते थे कि व्यापार भी तो ब्याज के समान ही है।
– जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध कहा है और ब्याज को पूरी तरह से अवैध। कुरआन में संदेश दिया गया है कि जो लोग इस हिदायत के बाद ब्याज लेना बंद कर देंगे उनका मामला अल्लाह को सुपुर्द है, लेकिन तमाम जानकारी के बाद भी जो नहीं संभला, जिसने ब्याज लेना जारी रखा, उसके लिए आगे नरकीय जीवन है और कोई मुक्ति नहीं है।
– जो व्यक्ति ब्याज लेता रहा है, क्योंकि उसे जानकारी नहीं थी, लेकिन अब वह यह बात समझ चुका है तो उसके लिए कुरआन का संदेश है – “अल्लाह से डरो और जो कुछ भी ब्याज में से शेष रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम सच्चे दिल से ईमान रखते हो।
… यदि तुम तौबा कर लो तो तुम्हारे लिए तुम्हारे मूलधन वैध है। न तुम खुद जुल्म करो और न तुम पर जुल्म किया जाए।
*कर्ज दें तो किन बातों का रखें ध्यान –
अगर तुम्हारे पास धन हो तो जरूरतमंद लोगों को कर्ज दो। उन्हें वापसी के लिए इतना समय दो कि कर्जदार इंसान उसे आसानी से वापस लौटा सके। किसी वास्तविक व अवश्यंभावी मजबूरी से अगर वह समय पर तुम्हें धन न लौटा सके तो उस पर सख्ती मत करो। उसका अपमान मत करो, उसे और समय दो।
– अल्लाह की अवज्ञा से बचो। रोजी कमाने का गलत तरीका, गलत साधन, गलत रास्ता न अपनाओ, क्योंकि कोई व्यक्ति उस वक्त तक मर नहीं सकता जब तक पूरी रोजी उसको मिल न जाए। हां, उसके मिलने में कुछ देरी या कठिनाई हो सकती है।
– तब धैर्य बनाए रखो, बुरे तरीके मत अपनाओ। अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफरमानी से बचते हुए सही, जायज, हलाल तरीके अपनाओ। हराम रोजी के करीब भी मत जाओ। – @[156344474474186:] | Sood | सूद

पैग़म्बरों का मिशन Mission of Prophet


पिछले ज़मानों में ख़ुदा की तरफ़ से जितने भी पैग़म्बर (ईश्वरदूत) आए वह सब इसी लिए आए कि वह इंसान को शिर्क यानी अनेकेश्वरवाद और अंधविश्वास से डराएँ और उन्हें एकेश्वरवाद यानी तौहीद की तालीम दें, ताकि इंसान इसके मुताबिक़, अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाए और दुनिया और मौत के बाद की ज़िंदगी में ख़ुशियाँ हासिल कर सके।
मगर इंसानियत के लम्बे इतिहास में लगभग हर पैग़म्बर के साथ ऐसा हुआ कि लोगों की ज़्यादा तादाद ने उनकी बात को मानने से इन्कार कर दिया। ख़ास तौर पर समाज के बड़े लोग पैग़म्बर को मानने या उनका साथ देने पर कभी राजी नहीं हुए। इस ऐतिहासिक घटना को क़ुरआन में इस तरह बताया गया है।
--- अफ़सोस है बन्दों के ऊपर, जो रसूल भी उनके पास आया वह उसका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे (या सीन :36:30)।
ख़ुदा के पैग़म्बरों को नज़रअंदाज़ करने का यह मामला इस हद तक आगे बढ़ा कि पिछले ज़माने में आने वाले पैग़म्बरों को इंसानी इतिहास के रिकॉर्ड या अभिलेख से मिटा दिया गया। यही वजह है कि पुराने ज़माने के लिखित और दर्ज इतिहास में बादशाहों की दास्तानें तो हम पढ़ते हैं मगर सिर्फ़ आख़िरी पैग़म्बर - मुहम्मद (सलल्लाहो अलैह वसल्लम) को छोड़ कर पैग़म्बरों का ज़िक्र और चर्चा दर्ज इतिहास में सिरे से मौजूद ही नहीं।
इस मामले में सिर्फ़ मुहम्मद (सल्लo) का ज़िक्र, इंसानी लिखित इतिहास में अकेला अपवाद है। आपको अल्लाह की ख़ास मदद हासिल हुई। इसके नतीजे में आप ने पहली बार अनेकेश्वरवाद को रद्द करके एकेश्वरवादी-यक़ीन की प्रेरणा और आंदोलन को एक ऐसी ज़िन्दा तहरीक बनाया जिसने इस आंदोलन को फ़िक्री और वैचारिक अवस्था से उठा कर व्यावहारिक क्रांति की अवस्था तक पहुँचा दिया और इसकी एक स्थाई और मज़बूत इतिहास बना दी।