गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी ....रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)

रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)
जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी। तलवार के भय
अथवा पद
के लोभ से तो बहुत थोड़े ही लोग मुसलमान हुए, ज़्यादा तो ऐसे ही थे
जिन्होंने इस्लाम का वरण स्वेच्छा से किया। बंगाल, कश्मीर और पंजाब
में गाँव-के-गाँव एक साथ मुसलमान बनाने के लिए किसी ख़ास आयोजन
की आवश्यकता नहीं हुई। ...मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का उपदेश
दिया वह अत्यंत सरल और सबके लिए सुलभ धर्म था। अतएव
जनता उसकी ओर उत्साह से बढ़ी। ख़ास करके, आरंभ से ही उन्होंने इस
बात
पर काफ़ी ज़ोर दिया कि इस्लाम में दीक्षित हो जाने के बाद,
आदमी आदमी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता है। इस बराबरी वाले
सिद्धांत के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और जिस
समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर वालों के धार्मिक
या सामाजिक
अत्याचार से पीड़ित थे उस समाज के निम्न स्तर के लोगों के बीच यह
धर्म
आसानी से फैल गया...।
‘‘...सबसे पहले इस्लाम का प्रचार नगरों में आरंभ हुआ क्योंकि विजेयता,
मुख्यतः नगरों में ही रहते थे...अन्त्यज और निचली जाति के लोगों पर
नगरों में सबसे अधिक अत्याचार था। ये लोग प्रायः नगर के भीतर बसने
नहीं दिए जाते थे...इस्लाम ने जब उदार आलिंगन के लिए अपनी बाँहें इन
अन्त्यजों और ब्राह्मण-पीड़ित जातियों की ओर पढ़ाईं, ये
जातियाँ प्रसन्नता से मुसलमान हो गईं।
कश्मीर और बंगाल में तो लोग झुंड-के-झुंड मुसलमान हुए। इन्हें किसी ने
लाठी से हाँक कर इस्लाम के घेरे में नहीं पहुँचाया, प्रत्युत, ये पहले से
ही ब्राह्मण धर्म से चिढ़े हुए थे...जब इस्लाम आया...इन्हें लगा जैसे यह
इस्लाम ही उनका अपना धर्म हो। अरब और ईरान के मुसलमान
तो यहाँ बहुत कम आए थे। सैकड़े-पच्चानवे तो वे ही लोग हैं जिनके बाप-
दादा हिन्दू थे...।
‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद ने किया था...वह धर्म, सचमुच,
स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे।
उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए
लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित
किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन
दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के
चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’
—‘संस्कृति के चार अध्याय’
लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994
पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317

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बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

अल्लाह (ईश्वर) में विश्वास

'अल्लाह" (ईश्वर) उस तस्वर का नाम है, जिससे ने इस ब्रम्हाण्ड का निर्माण किया और जो हमारे जीवन और मरण का मालिक है। इंसान की समस्त व्यावहारिकता और विचार सम्बन्धी व्यवस्था में जिस चीज की मौलिकता एंव केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। वह "अल्लाह" (ईश्वर) में विश्वास है।

बाकि दूसरी सभी धारणऐं एंव आदेश वास्तव में इस मूल की शाखाऐं हैं। जितने भी विचार, आदेश और मान्यताऐं हैं, उनमें मजबुती और सार्थकता अल्लाह (ईश्वर) में विश्वास से ही आती हैं। यदि इस एक केन्द्र से निगाह हटा ली जाए, तो इस दूनियां की प्रत्येक चीज अर्थहीन हो जाएगी और इंसान की सम्पूर्ण व्यवस्था, जिसका सम्बन्ध चाहे विचार एंव आस्था से हो या व्यवहार से, सब का सब छिन्न-भिन्न होकर रह जाएगा।
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